Falgun Ganesh Sankashti Chaturthi 2025: कब है फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी व्रत-पूजा? जानें इसका महात्म्य, पूजा-विधि, चंद्रोदय काल एवं व्रत कथा!
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना गया है, तथा मान्यता है कि प्रत्येक पखवाड़े की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इसलिए हर माह की चतुर्थी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है.

हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना गया है, तथा मान्यता है कि प्रत्येक पखवाड़े की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इसलिए हर माह की चतुर्थी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है. यहां बता दें कि कष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टि चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है. संकष्टि चतुर्थी की रात चंद्रमा का दर्शन जरूरी होता है, वहीं विनायक चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन निषेध होता है. यहां हम फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व्रत, जो कि 16 फरवरी 2025 को रखा जाएगा, के महात्म्य, मुहुर्त, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा के बारे में बात करेंगे.
माघ संकष्टी चतुर्थी का महात्म्य
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट से मुक्ति दिलाने वाली चतुर्थी. फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी के साथ पार्वती जी की पूजा की जाती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से देवी पार्वती एवं गणेश जी की विशेष कृपा से भक्त के सारे संकट दूर होते हैं. यह भी पढ़ें : Pulwama Attack: 14 फरवरी को जब सारी दुनिया वैलेंटाइन डे मनाती है, भारत में काला दिवस मनाया जाता है! जानें क्या है वजह!
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत मुहूर्त 2025
फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारम्भः 11.52 PM (15 फरवरी 2025 शनिवार)
फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्तः 02.15 AM (17 फरवरी 2025 सोमवार)
उदया तिथि के अनुसार 16 फरवरी 2025 को गणेश संकष्टि चतुर्थी का व्रत एवं पूजा की जाएगी.
चंद्रोदयः 09.51 PM से देर रात तक
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि
संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें. संकष्टी चतुर्थी पर व्रत एवं गणेशजी की पूजा का संकल्प लें. संध्याकाल के समय लाल रंग का वस्त्र धारण करें. पूजा स्थल पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं, इस पर गणेश जी एवं देवी पार्वती की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का 108 बार उच्चारण करें.
‘ॐ विघ्ननाशाय नमः’
अब गणपति बप्पा को दूर्वा, लाल पुष्प, इत्र, अक्षत, पान, सुपारी आदि अर्पित करें. भोग में फल, लड्डू चढ़ाएं. षोडशोपचार विधि से पूजा करने के पश्चात द्विजप्रिय संकष्टी की पौराणिक कथा सुनें एवं अंत में गणेश जी की आरती उतारें. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर आरती उतारें. इसके पश्चात व्रत का पारण करें.
द्विजप्रिय संकष्टी व्रत कथा
किसी समय युवनाश्व नामक राजा के शासनकाल में ब्रह्म शर्मा ब्राह्मण थे, सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता ब्राह्मण के 7 पुत्र एवं 7 बहुएं थीं. ब्रह्मशर्मा जब वयोवृद्ध हुए तो उनकी जर्जर अवस्था के कारण छह बहुओं ने उनका तिरस्कार करना शुरू किया, लेकिन छोटी बहु पूरी निष्ठा भाव से अपने श्वसुर की सेवा करती थी. उसकी सेवाभाव से प्रसन्न होकर श्वसुर ने छोटी बहु को संकष्टी चतुर्थी व्रत करने का सुझाव दिया. छोटी बहु ने द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का विधि विधान से व्रत और पूजा किया. समस्त भौतिक सुख-साधनों से सम्पन्न जीवन व्यतीत करने के पश्चात अन्त में सद्गति को प्राप्त हुई. अतः भगवान गणेश की विशेष से उसे संतान-लाभ के साथ सारे सुख प्राप्त हुए.