Death Anniversary of Veer Savarkar 2024: स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर के सफल नेतृत्व के 5 फैक्ट!

भारत की स्वतंत्रता का इतिहास वीर दामोदर सावरकर की चर्चा बिना अधूरी रहेगी. सावरकर ने एक कर्मठ कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ऐसी जगह बनाई, जिसका कोई विकल्प नहीं है. वह एक ऐसे कार्यकर्ता थे, जो खुले मन से ‘हिंदुत्व’ सोच के साथ आये, जिसे आज राष्ट्रवाद की संज्ञा से नवाजा जा रहा है.

Death Anniversary of Veer Savarkar 2024

भारत की स्वतंत्रता का इतिहास वीर दामोदर सावरकर की चर्चा बिना अधूरी रहेगी. सावरकर ने एक कर्मठ कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ऐसी जगह बनाई, जिसका कोई विकल्प नहीं है. वह एक ऐसे कार्यकर्ता थे, जो खुले मन से ‘हिंदुत्व’ सोच के साथ आये, जिसे आज राष्ट्रवाद की संज्ञा से नवाजा जा रहा है. उनकी ‘हिंदुत्व’ सोच से अंग्रेज भी भयाक्रांत रहते थे. वह देश के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने रत्नागिरी में अस्पृश्यता की कुप्रथा को समाप्त किया, यहां तक कि उन्होंने निचली जाति के बच्चों को शिक्षा के प्रति रुचि जगाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें चॉकलेट और स्लेट का वितरण भी करते थे. सावरकर की इस क्षमता, धैर्य, साहस और दूरदर्शिता का हर कोई कायल है. वीर दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि (26 फरवरी 1966) के अवसर पर आइये जानते हैं, उनकी नेतृत्व क्षमता के पांच मुख्य सूत्र क्या थे.

दूरदृष्टि रखने वाले क्रांतिकारी

किसी भी नेता का सबसे बड़ा गुण उसकी दूरदर्शिता होती है. वीर सावरकर की दूरदर्शिता देखने-परखने के बाद ही उन्हें हिंदू महासभा की सदस्य प्रदान की गई थी. सावरकर ने उस काल में हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार किया, जब भारत की अन्य राजनीतिक पार्टियां उनका पुरजोर विरोध कर रहे थे, लेकिन सावरकर ने हिंदुत्व को असली भारतीयता के रूप में प्रचारित किया, इसे लोकप्रिय बनाया, सावरकर का ‘हिंदुत्व’ जातिगत भेदभाव एवं अन्य स्वदेशी प्रथाओं से मुक्त था, दीवाली और संक्रांति जैसे हिंदू पर्वों पर वीर सावरकर विभिन्न जातियों के लोगों के साथ घर-घर जाकर मिठाइयां बांटते थे, अखंड हिंदुत्व के प्रति सावरकर का दृष्टिकोण अत्यंत सराहनीय रहा है. यह भी पढ़ें : Guru Ravidas Jayanti 2024 Quotes: हैप्पी गुरु रविदास जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें उनके ये अनमोल व प्रेरणादायी विचार

सीखने और सिखाने का जुनून!

कुशल नेतृत्व के लिए सूचित और जानकार होना जरूरी है. शिक्षा के क्षेत्र में सावरकर का कोई सानी नहीं था. उन्होंने फर्ग्युसन कॉलेज में स्नातक की डिग्री और यूनाइटेड किंगडम से केवल शिक्षा और डिग्री हासिल नहीं कि बल्कि शिक्षा अर्जित करते हुए उन्होंने दूसरे छात्रों को भी ब्रिटिश कब्जे के तहत भारत के संघर्षों को बताया. मई 1907 की शुरुआत में लंदन में रहते हुए उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह की 50वीं वर्षगांठ का जश्न तिलक हाउस, 78 गोल्डस्मिथ एवेन्यू, ऐक्टन, लंदन में आयोजित किया. छात्रों ने 1857 में शहीदों का सम्मान नामक किंवदंती वाले बैज पहने, सावरकर ने इसी तरह दूसरों को शिक्षित किया.

संघर्षरत जीवन में भी लचीलापन!

वीर सावरकर ने आजादी के लिए अथक चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन इसके बावजूद वे सदा लचीले बने रहे. 1904 में पुणे में छात्र जीवन बिताते हुए उन्होंने भाई गणेश दामोदर सावरकर के साथ अभिनव भारत सोसाइटी नामक संगठन स्थापित किया. इसके साथ ही वह स्वतंत्र भारत सोसाइटी और इंडिया हाउस के लिए भी काम किया. उन्होंने ब्रिटेन प्रवास के दौरान भारत की पूर्ण स्वतंत्रता पर कई पुस्तकें लिखी. भारत में प्रत्यर्पित करने का आदेश मिलने पर उन्होंने भागकर फ्रांस में शरण लेने की कोशिश की. अंडमान में 15 वर्ष सश्रम कारावास के बावजूद उन्होंने रिहाई के बाद सामाजिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया.

अदम्य साहसी!

वीर सावरकर इतने बहादुर थे कि उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी शक्ति ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर लिया. उन्होंने साहस और बहादुरी के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वान किया. साथ ही इसकी वकालत भी की. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत को किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से मुक्ति पानी होगी. उन्होंने ऐसी पुस्तकें प्रकाशित की, ब्रिटिश हुकूमत को भड़काने और उकसाने वाली थी, जिसके कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने उन पर तमाम प्रतिबंध लगा दिये थे. ये इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस जैसी किताबें थीं, जो 1857 के भारतीय विद्रोह पर केंद्रित थी. उन्होंने भारत बंटवारे पर गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पुरजोर विरोध किया.

धैर्य और संयम!

स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के पश्चात से ही वीर सावरकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की कैद से लेकर यूनाइटेड किंगडम से प्रत्यर्पण तक वीर सावरकर को अथक कष्ट सहना पड़ा, लेकिन तमाम संकटों को झेलने के बावजूद उन्होंने बिना संयम खोये अपने सारे कार्यों को संचालित किया.

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