Christmas 2018: 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है क्रिसमस का पर्व, जानें इससे जुड़ी ऐतिहासिक मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार, 25 दिसंबर सूर्य देव के पुनर्जन्म का दिन माना जाता है. ऐसे में कहा जाता है कि ईसाई परंपराओं और यूरोप में पहले से प्रचलित परंपराओं का जो संगम हुआ, उसी के परिणाम स्वरुप सूर्य देव के पुनर्जन्म के पर्व को ईसा के जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाने लगा.
Christmas 2018: हर साल 25 दिसंबर (25th December) को दुनिया भर में क्रिसमस (Christmas) का पर्व बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यहां गौर करने वाली बात तो यह है कि भले ही इस पर्व को ईसा मसीह (Yeshu Masih) के जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन अधिकांश ईसाई विद्वान (Christian scholars) भी इस बात से सहमत हैं कि 25 दिसंबर ईसा के जन्म का वास्तविक दिन नहीं है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म नहीं हुआ था तो फिर इस दिन क्रिसमस का पर्व क्यों मनाया जाता है और 25 दिसंबर को उनका जन्मोत्सव मनाने की परंपरा कैसे शुरु हुई. चलिए जानते हैं 25 दिसंबर को मनाए जाने वाले इस पर्व से जुड़ी दिलचस्प ऐतिहासिक मान्यता.
ईसाई धर्म के कई विद्वानों के अनुसार, जब ईसाई धर्म यूरोप पहुंचा तब वहां पहले से ही कई त्योहार प्रचलित थे, जिनमें से प्रमुख था 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व. माना जाता है कि इस तिथि से दिन लंबा होना शुरु हो जाता है, जिसके कारण इस दिन को सूर्य देव (Surya Dev) के पुनर्जन्म का दिन भी माना जाता है.
सूर्य देव के पुनर्जन्म का है पर्व
मान्यताओं के अनुसार, 25 दिसंबर सूर्य देव के पुनर्जन्म का दिन माना जाता है. ऐसे में कहा जाता है कि ईसाई परंपराओं और यूरोप में पहले से प्रचलित परंपराओं का जो संगम हुआ, उसी के परिणाम स्वरुप सूर्य देव के पुनर्जन्म के पर्व को ईसा के जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाने लगा.
हालांकि शुरुआत में इस बात को लेकर काफी मतभेद भी थे कि क्या ईसा मसीह के जन्मदिन के पर्व को मनाया जाना चाहिए, क्योंकि तब ईसा के बलिदान और पुनरुत्थान का पर्व 'ईस्टर' ही ईसाई धर्म का प्रमुख त्योहार माना जाता था. यह भी पढ़ें: क्रिसमस की छुट्टियों में 5,000 रुपये से भी कम खर्च में करें भारत के इन खूबसूरत पर्यटन स्थलों की सैर
शुरुआत में आईं थी काफी दिक्कतें
बताया जाता है कि पिछले डेढ़ शताब्दी से ही क्रिसमस के पर्व को बिना किसी बाधा के मनाया जा रहा है, लेकिन शुरुआत में क्रिसमस के आयोजन के लिए खुद धर्माधिकारी भी मान्यता नहीं दे रहे थे. कहा जाता है कि वास्तव में 25 दिसंबर का दिन रोमन लोगों के लिए एक त्योहार का दिन हुआ करता था, जिसमें सूर्य देव की आराधना की जाती थी. उस दौरान सूर्य की उपासना रोमन सम्राटों का एक राजकीय धर्म हुआ करता था.
हालांकि जब ईसाई धर्म का प्रचार हुआ तो कुछ लोग ईसा मसीह को सूर्य का अवतार मानकर इसी दिन उनकी पूजा करने लगे, लेकिन शुरुआत में ईसाई धर्म के लोगों में इस तरह के किसी भी पर्व का सार्वजनिक तौर पर आयोजन नहीं होता था. यह भी पढ़ें: December 2018 calendar: आ गया साल का आखिरी महीना, जानें दिसंबर में पड़ने वाले बड़े त्योहारों व छुट्टियों की पूरी लिस्ट
इसलिए 25 दिसंबर को मनाया जाता है क्रिसमस
मान्यताओं के मुताबिक, ईसाई धर्म के प्रचार के बाद गडरिए आठ दिनों के बसंतकालीन उत्सव के दौरान अपने जानवरों के पहले बच्चे की बलि ईसा मसीह के नाम पर देने लगे और उनके नाम पर भोज का आयोजन करने लगे. हालांकि उस दौरान यह उत्सव केवल गडरियों तक ही सीमित था, लेकिन फिर लंबी बहस और काफी सोच-विचार किए जाने के बाद चौथी शताब्दी में रोमन चर्च और सरकार ने संयुक्त रूप से 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन घोषित कर दिया. यही वजह है कि तब से लेकर अब तक हर साल 25 दिसंबर को ही क्रिसमस का पर्व मनाया जाता है.