Chanakya Niti: ब्राह्मण दक्षिणा पाने और शिष्य शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु को क्यों छोड़ देते हैं! जानें चाणक्य की इस नीति का क्या आशय है?
आचार्य चाणक्य को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. यहां हम उनकी विश्वविख्यात चाणक्य नीति की बात करेगें जो सैकड़ों साल बाद आज भी सामयिक लगती हैं. चाणक्य की यह नीति सही समय पर, सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करती है और व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में उचित कदम उठाने में मदद करती है.
आचार्य चाणक्य को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. यहां हम उनकी विश्वविख्यात चाणक्य नीति की बात करेगें जो सैकड़ों साल बाद आज भी सामयिक लगती हैं. चाणक्य की यह नीति सही समय पर, सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करती है और व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में उचित कदम उठाने में मदद करती है. चाणक्य नीति सिखाती है कि कैसे मधुर वाणी का प्रयोग करें, क्योंकि मधुरता से समाज में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है. चाणक्य नीति बताती है कि परिश्रम ही असंभव को संभव बनाने की शक्ति रखता है और इससे न केवल लक्ष्य प्राप्ति होती है, बल्कि उन्नति के अवसर भी मिलते हैं. चाणक्य नीति को ज्ञान का सागर माना जाता है. आइये जानते हैं चाणक्य नीति में चाणक्य ने यहां किस तरह जग की रीतियों का उल्लेख किया है. यह भी पढ़ें: Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा कब मनाई जाएगी 6 या 7 अक्टूबर को? जानें इसकी सही तिथि, मुहूर्त, महत्व एवं पूजा-विधि!
गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्।
प्राप्तविद्या गुरु शिष्याः दग्धारण्यं मृगास्तथा ।।18।।
अर्थात इस श्लोक के अनुसार आचार्य चाणक्य जग की रीति पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि दक्षिणा ले लेने पर ब्राह्मण यजमान को छोड़ देते हैं, विद्या प्राप्त कर लेने के बाद शिष्य गुरु को छोड़ देते हैं और वन में आग लग जाए तो पर वन के तमाम पशु वन को त्यागने में एक पल देर नहीं करते हैं.
आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का मूल आशय यह है कि ब्राह्मण दक्षिणा प्राप्त होने तक ही यजमान के पास रहता है. जैसे ही उसे यजमान से दक्षिणा मिल जाती है, वह उसे छोड़कर अन्यंत्र यानी दूसरे यजमान के पास जाने की सोचने लगता है. उसी तरह शिष्य अध्ययन करने के लिए गुरु के पास जाते हैं, जैसे ही उन्हें सारी प्राप्त हो जाती हैं, वह गुरु के स्थान को तत्त्काल छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं. अर्थात जीवन के मूल ध्येय के प्रति विचार करते हुए अगली योजना में व्यस्त हो जाते हैं. इसी तरह हिरण एवं अन्य वनचर प्राणी तभी तक वन में बने रहते हैं, जब तक वन हरा-भरा रहता है, लेकिन अगर वन में आग लग जाए, तो वहां रहनेवाले पक्षी अन्यत्र डेरा जमाने के विचार से उड़ जाते हैं, अथवा पशु जंगल छोड़कर कहीं और शरण ले लेते हैं.
उपरोक्त श्लोक का मूल आशय यही है कि किसी आश्रय या उपलब्धि-स्रोत पर जीव, जंतु (इंसान समेत) तभी तक निर्भर रहते हैं, जब तक उसके लक्ष्य की पूर्ति होती रहती है, जैसे ही उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है अथवा किसी कारणवश उस स्थान का उसके जीवन में कोई महत्व नहीं रह जाता है, तो वह अमुक स्थान छोड़कर आगे बढ़ जाता है, जो उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इसका वैज्ञानिक पहलू यह है कि लक्ष्य पूर्ण होने पर उपयोगिता ह्रास का नियम लागू होता है.