Chanakya Niti: ‘बुद्धिमान व्यक्ति ही सर्व शक्तिशाली होता है!’ जानें आचार्य चाणक्य ने अपनी इस नीति में क्या कहना चाहा हैं!

आचार्य चाणक्य प्राचीन भारत के महान विद्वान, दार्शनिक, अर्थशास्त्री कुशल कुशल राजनीतिज्ञ थे. वह मौर्य वंश के संस्थापक, चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और प्रमुख सलाहकार थे. एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्में चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की.

  आचार्य चाणक्य प्राचीन भारत के महान विद्वानदार्शनिकअर्थशास्त्री कुशल कुशल राजनीतिज्ञ थे. वह मौर्य वंश के संस्थापक, चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और प्रमुख सलाहकार थे. एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्में चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की. आचार्य ने अर्थशास्त्रराजनीतियुद्ध की रणनीतियांचिकित्सा एवं ज्योतिष जैसे विषयों में भी गहरा ज्ञान प्राप्त किया था. आचार्य ने अपने बुद्धिमता और तत्परता को अपनी नीतियों में संग्रहित किया. इस नीति-शास्त्र में नीतिधर्मनेतृत्वज्ञानसंयमऔर निर्णय लेने की कला पर जोर दिया गया है. चाणक्य का उद्देश्य लोगों को सफलसशक्त और नैतिक बनाना थाताकि वह अपने जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकें. आइये जानें इस श्लोक में वह क्या कहना चाहते हैं. यह भी पढ़ें : Hanuman Janmotsav 2025: कब है हनुमान जयंती 11 या 12 अप्रैल को? जानें हनुमानजी को बजरंगबली क्यों कहते हैं? एवं कैसे करें हनुमान जयंती की पूजा!

बुद्धिर्यस्यबलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।

वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः ।॥16

अर्थात जिस व्यक्ति के पास बुद्धि होती है, बल भी उसी के पास है, बुद्धिहीन व्यक्ति का बलशाली होने निरर्थक है. क्योंकि बल का प्रयोग एक बुद्धिमान व्यक्ति ही सही तरीके से कर सकता है. अपनी बुद्धि के बल पर ही खरगोश ने अपने से कई गुना बलशाली मगर अहंकारी सिंह को कुएं में गिराकर अपनी रक्षा कर सका था.

 आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र के 16वें अध्याय में बताया है कि जिस व्यक्ति के पास बुद्धि होती है, बल भी उसी के पास होता है. इसके पीछे एक कथा है कि एक बार जंगल में सिंह के साथ वन के अन्य पशुओं के बीच एक समझौता हुआ कि सिंह बारी-बारी से वन के एक पशु को अपना ग्रास बनाएगा. इस तरह प्रतिदिन एक पशु सिंह के पास भेजा जाने लगा. इसी क्रम में एक बार एक खरगोश की बारी आई. उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए जानबूझ कर सिंह के पास विलंब से पहुंचा. देर से आने पर जब सिंह ने खरगोश को डांटते हुए पूछा कि इतनी देरी से क्यों आया, तब खरगोश ने बताया कि वह तो समय से निकला था, लेकिन वन में एक दूसरे सिंह ने उस पर झपट्टा मारा, लेकिन जैसे-तैसे वह जान बचाकर यहां पहुंचा है. सिंह ने उससे कहा, चलो मैं देखूं कौन है वह सिंह जो मेरा आहार मुझसे छीन रहा था. तब खरगोश उसे एक पानी भरे कुएं के पास ले गया. खरगोश ने सिंह को बताया कि दूसरा सिंह इसी कुएं में छिपा हुआ है. सिंह ने कुएं में झांका तो पानी में उसे अपना प्रतिबिंब दिखा, लेकिन अहंकारवश वह इसे समझ नहीं सका और उस पर झपट्टा मारने हेतु कुएं में छलांग लगा लिया, और शीघ्र ही पानी में डूबने से उसकी मृत्यु हो गई.

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