
आचार्य चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी लोकप्रिय है, वह एक महान भारतीय दार्शनिक, अर्थशास्त्री, और राजनीतिज्ञ थे. वह चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे और उन्होंने नंदवंश को हराकर चंद्रगुप्त को मौर्य साम्राज्य का राजा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वह प्राचीन भारत के महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और रणनीतिकार थे. उनकी नीतियां चाणक्य नीति के नाम से संग्रहित हैं, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन दिया है. इन नीतियों में धर्म, संस्कृति, न्याय, शिक्षा, और व्यक्ति के विकास पर जोर दिया गया है, जिसे आचार्य चाणक्य ने संस्कृत भाषा में उल्लेखित किया है. आइये जानते हैं इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य क्या कहना चाहते हैं. :
धनधान्य प्रयोगेषु विद्या संग्रहेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥
अर्थात
धन और अनाज का प्रयोग करने में, विद्या को प्राप्त करने में, भोजन करने में और व्यवहार में लज्जा अर्थात शर्म को त्यागने वाला व्यक्ति ही सदा सुखी रहता है. यह भी पढ़ें : Gujarat Day 2025 Messages: हैप्पी गुजरात दिवस! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Wishes, GIF Greetings, Quotes और Photo SMS
आचार्य चाणक्य यहां इंसान को लाज-संकोच करने के संदर्भ में बता रहे हैं कि धन और अनाज के लेन-देन, विद्या प्राप्त करते समय, भोजन तथा आपसी व्यवहार में लज्जा न करने वाला सुखी रहता है. यहां इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य बता रहे हैं कि कुछ बातों में लज्जा न करना ही लाभदायक है. किसी को धन उधार देते समय, या किसी से अपना पैसा वापस लेते समय या अनाज आदि के लेन-देन में किसी प्रकार शर्म, संकोच हरगिज नहीं करना चाहिए. इसी प्रकार विद्या ग्रहण करते समय यदि कोई बात समझ में न आए या किसी प्रकार का संदेह अथवा दुविधा हो रही है अथवा भोजन करते समय अथवा किसी भी प्रकार के बात-व्यवहार में, शर्म या संकोच से बचते हुए स्पष्ट बात करनी चाहिए. वस्तुतः मनुष्य के लिए बेहतर यही है कि वह लेन-देन के मामले में लिखा-पढ़ी कर ले, ताकि जरूरत पड़ने पर अपनी तरफ से पुख्ता बात सामने रख सके.
इसी तरह से विद्या के संग्रह और खाने-पीने के मामले में भी यदि व्यक्ति संकोच करेगा यह उसके लिए आगे चलकर नुकसानदेह साबित हो सकता है. अगर व्यापार या व्यवसाय अपने सगे-सम्बन्धियों से कर रहा है, तो उसे अपने व्यवहार में मधुरता, सत्य एवं स्पष्ट रहना चाहिए. अतः आवश्यक है कि व्यक्ति को संकोच छोड़कर सदा सच्ची बात करनी चाहिए और व्यावहारिक मार्ग अपनाना चाहिए. पैसे के लेन-देन में हिसाब-किताब और पारदर्शिता बहुत जरूरी है.