Chaitriya Navratri Day-4: कौन हैं माँ कूष्माण्डा? जानें देवी कूष्माँडा की पूजा का महात्म्य, स्वरूप, मंत्र, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा!
नवरात्रि के चौथे दिन आदिशक्ति माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है. इस दिन भक्त मनोवांछित पुण्य-फल की प्राप्ति हेतु व्रत एवं अनुष्ठान करते हैं. देवी पुराण के अनुसार माँ कूष्माण्डा ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी, और इनका निवास सूर्य लोक में है.
नवरात्रि के चौथे दिन आदिशक्ति माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है. इस दिन भक्त मनोवांछित पुण्य-फल की प्राप्ति हेतु व्रत एवं अनुष्ठान करते हैं. देवी पुराण के अनुसार माँ कूष्माण्डा ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी, और इनका निवास सूर्य लोक में है. माँ कूष्मांडा के मुखमंडल पर तेज आभा झलकती है, जिससे समस्त लोक प्रकाशमय होता है. अष्टभुजाओं वाली माँ कूष्मांडा का प्रिय वाहन सिंह है. चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन की यह पूजा एवं व्रत 12 अप्रैल 2024 को, शुक्रवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं मां कूष्मांडा के महात्म्य, मंत्र एवं पूजा विधि के बारे में विस्तार से...
माँ कूष्माँडा का स्वरूप एवं इनकी पूजा का महात्म्य
सिंह पर सवार माँ कूष्मांडा का तेज दसों दिशाओं को प्रकाशित करता है. इनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं. इनकी भुजाओं में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमलपुष्प सुशोभित होते हैं, एक हाथ में सभी सिद्धियां और निधियां प्रदान करनेवाली जपमाला है. माँ की निम्न विधिवत उपासना से असाध्य से असाध्या रोग नष्ट होते हैं, सभी रोग-शोक से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि अगर प्रतिदिन निम्न मंत्र के साथ माँ दुर्गा की पूजा करें तो घर में बीमारियां नहीं पनपतीं. यह भी पढ़ें : Navratri 2024 Day-3: आज माँ चंद्रघंटा की पूजा से नष्ट होंगी आसुरी शक्तियां! जानें इसका महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त, पूजा विधि और क्या है शुभ रंग!
पूजा-विधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर देवी के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. अब गणेश जी की स्तुतिगान के साथ पूजा करें. तत्पश्चात कलश पर पुष्प, अक्षत अर्पित करें. अब दुर्गा स्वरूपा माँ कुष्मांडा को कुमकुम, मौली, अक्षत, पान, केसर और श्रृंगार आदि अर्पित कर निम्न मंत्र का जाप करें,
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाने के पश्चात सफेद कुम्हड़ा माता रानी को अर्पित करें. अगर दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करते हैं, तो इसके कुछ अध्याय का पठन करें. देवी कूष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं, इसलिए भोग में उन्हें मालपुए चढ़ाएं. इसके बाद दुर्गा चालीसा पढ़ें. पूजा का समापन दुर्गाजी की आरती से करें. मान्यता है कि संपूर्ण विधि एवं सच्ची निष्ठा से माँ कूष्मांडा की पूजा की जाए तो घर से नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं, तथा माँ कूष्मांडा की भक्ति से आयु, यश, बल एवं आरोग्य की वृद्धि होती है. कृपा से घर में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है.
मां कूष्मांडा की पौराणिक कथा
देवी पुराण के अनुसार एक समय संपूर्ण ब्रह्मांड में अंधकार व्याप्त था. कहते हैं कि देवी के दिव्य प्रकाश से पूरे ब्रह्माण्ड प्रकाशमान हो गया. इस प्रकाश के साथ ही पृथ्वी पर सूर्य, तारे, तमाम ग्रह, आकाश गंगाएं, नदी, तालाब, पेड़, पहाड़ अस्तित्व में आये. देवी कूष्मांडा प्रकाश और ऊर्जा का कारण है, इसलिए वो सूर्य के मूल में रहती हैं. ब्रह्माण्ड के निर्माण के बाद उन्होंने देवताओं को बनाया, इसके बाद पृथ्वी पर अन्य जीवित प्राणियों की रचना की. इस तरह देवी कूष्मांडा ने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की.