Heart Attack In Youth: कम उम्र में हार्ट अटैक से बचें! जानें मुंबई की सुप्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट के 6 अनमोल सुझाव!

अचानक आने वाले हार्ट अटैक में मधुमेह भी एक मुख्य वजह हो सकती है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मधुमेह के रोगियों में हार्ट अटैक से मरने का जोखिम करीब चार गुना ज्यादा होता है. बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अपने डायबिटिक होने का पता ही नहीं चल पाता. रक्त में जब अचानक शुगर की मात्रा बढ़ती है तो रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, इससे धमनियों में बैड फैट जमने लगती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला (Sidharth Shukla) की असमय मौत ने ना केवल आमजन को बल्कि ह्रदय रोग विशेषज्ञों (Cardiologists) को भी परेशानियों में डाल दिया है. पिछले कुछ अर्सा से कम उम्र में होनेवाले हार्ट अटैक (Heart attack) की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है. एक रिसर्च के अनुसार 35 से 50 वर्ष के मरीजों में हार्ट अटैक की दर 27 प्रतिशत से बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है. युवाओं में हार्ट अटैक से मौत के बढ़ते आंकड़े हमारे देश-समाज एवं स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) के लिए परेशानी का सबब बन गये हैं. मुंबई (Mumbai) स्थित नानावटी अस्पताल (Nanavati Hospital) की मोस्ट सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ लेखा पाठक (Lekha Pathak) के अनुसार स्मोकिंग (Smoking), शराब (Alcohol), नशीली दवाओं का सेवन (Drug Abuse), अत्यधिक व्यायाम (Excessive Exercise), तनाव (Stress), गलत खानपान (Diet) एवं इसमें अनियमितता तथा आनुवंशिकता इसकी मुख्य वजहें हो सकती हैं. हम सभी को इस पर नियंत्रण रखना जरूरी है, क्योंकि इस उम्र में शरीर में हार्मोंस से लेकर मांसपेशियों तक तमाम तरह के बदलाव आते हैं. इसके अलावा हमें 40 की उम्र से ही कुछ आवश्यक जांचें नियमित रूप से करवाते रहना चाहिए. ऐसा करके हम खुद को संभावित हार्ट अटैक से बचा सकते हैं. Heart Attack: क्यों आती है दबे पांव मौत? जानें कारण, लक्षण और कैसे करें बचाव!

ब्लड शुगर की जांच (Blood sugar check)

अचानक आने वाले हार्ट अटैक में मधुमेह भी एक मुख्य वजह हो सकती है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मधुमेह के रोगियों में हार्ट अटैक से मरने का जोखिम करीब चार गुना ज्यादा होता है. बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अपने डायबिटिक होने का पता ही नहीं चल पाता. रक्त में जब अचानक शुगर की मात्रा बढ़ती है तो रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, इससे धमनियों में बैड फैट जमने लगती है. मेडिकल टर्म में इसे एथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं. ऐसी स्थिति में हार्ट अटैक के साथ-साथ किडनी डैमेज का भी रिस्क होता है. इसलिए 35-40 के बीच की उम्र में ब्लड शुगर की जांच अवश्य करवा लें. गौरतलब है कि सामान्य ब्लड प्रेशर 120/80 mm Hg माना जाता है.

कोलोनास्कोपी (Colonoscopy Test)

कोलोनोस्कोपी एक ऐसा टेस्ट है, जिसका इस्तेमाल बड़ी आंत या गूदा में किसी प्रकार की खराबी या अन्य विषमताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है. 40 साल के बाद साल में कम से कम एक बार कोलोनास्कोपी का टेस्ट अवश्य करवा लेना चाहिए. विशेष रूप से तब जब आपके परिवार में किसी एक सदस्य की कोरोन कैंसर की शिकायत रही हो. इस जांच से कैंसर की प्रारंभिक अवस्था का पता लगाया जा सकता है.

विटामिन डी की जांच (Vitamin D Test)

बढ़ती उम्र के साथ शरीर की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. विशेष रूप से स्त्रियों में 35 से 40 के मध्य मेनोपोज होने से यह समस्या बढ़ती है. विटामिन-D की कमी से हड्डियों अथवा मसल्स पेन बढ़ जाता है. हैरानी की बात तो यह है कि आजकल युवाओं में भी विटामिन-D की कमी की शिकायतें खूब आ रही हैं. यद्यपि अगर आप प्रतिदिन आधे घंटे की धूप लेते हैं तो विटामिन-D की कमी की शिकायत आपको कभी नहीं होगी.

रक्तचाप की जांच (blood pressure screening)

आज जिस तरह से युवाओं में हार्ट अटैक की घटनाएं बढ़ रही हैं, इसलिए 35 साल के बाद से ब्लड प्रेशर स्क्रीनिंग नियमित रूप से कराते रहना चाहिए. 40 से 50 के बीच हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन का होना खतरनाक होता है, क्योंकि इससे कोरोनरी धमनियों पर बुरा असर पड़ता है. ऐसी स्थिति में हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. ये पोजीशन ही साइलेंट किलर के नाम से मशहूर है, क्योंकि इनका अहसास ऊपर से पता नहीं चलता. इसलिए ब्लड प्रेशर की जांच 35 साल के बाद साल में कम से कम दो बार अवश्य करवाते रहना चाहिए.

कोलेस्ट्रोल (cholesterol) की जांच

35 से 40 की उम्र के दरम्यान हर किसी को लिपिड (वसा) यानी कोलेस्ट्रॉल की रुटीनी जांच एक बार अवश्य करवा लेना चाहिए. इस जांच से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा का पता चलता है. कोलेस्ट्रॉल की जांच में रक्त में मौजूद चार तरह की वसा की जांच की जाती है. बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने से बैड फैट धमनियों में जमा होकर उन्हें संकरा कर देता है. इससे रक्तसंचार ठीक से नहीं हो पाता, जो हार्ट अटैक का कारण बनता है. इससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ सकता है और ब्रेन स्ट्रोक, तनाव आदि की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. 7.8 मिलिमोल्स प्रति लीटर से ज्यादा कोलेस्ट्रॉल को अत्यधिक उच्च कोलेस्ट्रॉल का स्तर कहेंगे. इसका उच्च स्तर हार्ट अटैक और स्ट्रोक के खतरे को कई गुना बढ़ाता है.

कार्डिएक स्ट्रेस टेस्ट- (cardiac stress test)

दिल से जुड़ी बीमारी का पता लगाने के लिए कार्डिएक स्ट्रेस टेस्ट की जांच भी 40 साल के भीतर करवा लेनी चाहिए. यह जांच बताता है कि आपके दिल में रक्त संचार सुचारु ढंग से हो रहा है या नहीं. इस जांच से दिल की धड़कनों की जांच, थकान, हार्ट रेट, श्वास, ब्लड प्रेशर और व्यायाम आदि के समय हार्ट एक्टिविटी की जांच की जाती है. अगर किसी को छाती में दर्द, वीकनेस अथवा सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो समय रहते कार्डिएक टेस्ट अवश्य करवा लें.

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