‘जंगल की जमीन’ बचाने के लिए तेलंगाना सरकार से भिड़ रहे युवा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों का दावा है कि विवादित इलाके में वनस्पतियों और जीवों की 450 से ज्यादा प्रजातियां हैं. सरकार उस जमीन को जंगल नहीं मानती है लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने वहां पेड़ गिराने पर रोक लगा दी है.तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में 400 एकड़ जमीन को लेकर विवाद हो रहा है. यह जमीन हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास स्थित है. विश्वविद्यालय और राज्य सरकार दोनों इस जमीन पर अपना दावा कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य सरकार आईटी पार्क बनाने के लिए इस जमीन को खाली करवाना चाहती है. वहीं, विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह जंगल की जमीन है और इसे साफ करने से पर्यावरण को नुकसान होगा.

बुलडोजर से हटाए गए पेड़

राज्य की कांग्रेस सरकार ने बीते 30 मार्च को जमीन खाली करवाने के लिए बुलडोजर भेजे थे. ये मशीनें पेड़ों को हटाकर जमीन को साफ कर रही थीं. इसका विरोध कर रहे लगभग 50 स्टूडेंट्स को पुलिस ने हिरासत में लिया था. उसके बाद, दो अप्रैल को विश्वविद्यालय की एक स्टूडेंट यूनियन ने अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन और कक्षाओं का बहिष्कार करने की घोषणा की.

सोशल मीडिया पर तेलंगाना सरकार की कार्रवाई का काफी विरोध देखने को मिला. मणिपुर की जलवायु कार्यकर्ता लिसीप्रिया कंगुजम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि इसे तुरंत रोका जाए और वे स्टूडेंट्स और हैदराबाद के लोगों के साथ खड़ी हैं.

गुरुवार को यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने उस इलाके में पेड़ गिराने पर अंतरिम रोक लगा दी. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने तेलंगाना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को निर्देश दिया है कि वे उस जगह का निरीक्षण कर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपे. तेलंगाना के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि अगले आदेश तक कोई पेड़ ना गिराए जाएं.

हर तीन में से एक पेड़ पर मंडरा रहा है खतरा

बुधवार को विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं का एक समूह रैली निकालते हुए पूर्वी कैंपस की ओर बढ़ रहा था. यह वही जगह है, जहां बुलडोजर लगे हुए थे. इस दौरान, पुलिस और स्टूडेंट्स के बीच झड़प हो गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस ने युवाओं को रोकने के लिए हल्का बल प्रयोग किया जिसमें 20 से ज्यादा छात्र-छात्राएं चोटिल हो गईं.

कानून के मामले में किसका पलड़ा भारी

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन का यह विवाद दशकों पुराना है. केंद्रीय हैदराबाद विश्वविद्यालय का दावा है कि उसे 1975 में 2,324 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी और यह 400 एकड़ जमीन उसी का हिस्सा है. हालांकि, 2022 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि विश्वविद्यालय के दावे को साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज मौजूद नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था.

अब यह मामला दोबारा तेलंगाना हाईकोर्ट में पहुंच गया है. एनजीओ वट फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर कर मांग की है कि इस जमीन को वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत राष्ट्रीय पार्क घोषित किया जाए. वहीं, स्टूडेंट्स ने मंगलवार को एक जनहित याचिका दायर कर मांग की कि सरकार द्वारा इस जमीन का आवंटन करने पर रोक लगाई जाए.

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हाइकोर्ट ने बुधवार को इन याचिकाओं पर सुनवाई की और विवादित जगह पर अगले 24 घंटों तक कोई भी काम करने पर अंतरिम रोक लगा दी. कार्यवाहक न्यायधीश सुजॉय पॉल के नेतृत्व में एक डिवीजन बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

पर्यावरण को लेकर क्या हैं चिंताएं

स्टूडेंट्स और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह जमीन ईकोलॉजी के लिहाज से संवदेनशील है. वे हैदराबाद विश्वविद्यालय और ‘वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर' (भारत) की एक स्टडी का हवाला देते हुए कहते हैं कि इस इलाके में वनस्पतियों और जीवों की 450 से अधिक प्रजातियां हैं. उनके मुताबिक, इनमें जड़ी-बूटियों और झाड़ियों से लेकर तितलियों और पक्षियों की प्रजातियां शामिल हैं.

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि बुलडोजर से पेड़ों को गिराना सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने आदेश में कहा था कि अगर किसी इलाके में वन्यजीव रहते हैं तो उससे जुड़ा कोई फैसला लेने से पहले विशेषज्ञों के पैनल को पेड़ों की कटाई से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करना होगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार इन दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही है.