World Hindi Day 2023: जानें पीएम मोदी ने कैसे वैश्विक मंचों पर हिंदी को दिलाई पहचान
विदेश से कई लोग हिंदी सीखने के लिए भारत आए तो कई कोविड काल में ऑनलाइन मौजूदा विकल्पों के जरिए ही हिंदी सीखने में लगे हैं. यही इस भाषा की बढ़ती लोकप्रियता का बखान करती है. ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि आज हिंदी भाषा काफी लोकप्रिय हो रही है.
देश-विदेश में बसे सभी हिंदी प्रेमियों को ये भली-भांति ज्ञात है कि प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में हिंदी भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए जागरूकता फैलाना है. गौरतलब हो, विश्व भर में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में लगे असंख्य लोगों के बहुमूल्य योगदान से आज हिंदी फल-फूल रही है. लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर रह चुकी कुछ महान विभूतियां भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान अदा कर चुकी हैं.
वैश्विक मंचों पर हिंदी में संबोधन की शुरुआत
जी हां, इनमें पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी प्रमुख व्यक्ति रहे हैं. दरअसल, अटल बिहारी स्वयं जीवन पर्यन्त हिंदी के विकास के लिए विभिन्न स्तर पर कार्यों में जुटे रहे. तभी तो उनकी हिंदी कविताएं देश के युवाओं के लिए आदर्श रूपी साबित होती रहीं. वे जब तक जीवित रहे उन्होंने हिंदी से हुए अपने इस विशेष लगाव का कदापि कम न होने दिया. वे बेहद व्यस्त समय में से भी हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समय जरूर निकाल लेते थे फिर चाहे वे उनकी स्वरचित काव्य रचनाओं में ही हमें क्यों न प्राप्त हुई हों. एक तो उनके पास देश के इतने बड़े पद की जिम्मेदारी थी जिसे वे बखूबी निभाते थे, ऊपर से अपने लिखे हर शब्द की जिम्मेदारी भी वे स्वयं लेते थे.
युवाओं में जोश भर देने वाली अटल जी कविता ‘आओ फिर से दिया जलाएं’ की इन पंक्तियों से इस मौके पर हम भी कुछ प्रेरणा लेते हैं…
“आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं”
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी वैश्विक मंच पर हिंदी में संबोधन की शुरुआत
दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी ही आधुनिक भारत के ऐसे पहले नेता रहे हैं जिन्होंने हिंदी को न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में विशेष पहचान दिलाने के लिए पहल कदमी की. जी हां, इसके लिए उन्होंने वैश्विक मंचों पर हिंदी में संबोधन की शुरुआत की.
1977 में यूएन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण बेहद यादगार रहा
यही कारण रहा कि 1977 में यूएन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण बेहद यादगार रहा था। उस समय उनके उस भाषण की काफी सराहना भी हुई थी. भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके नक्शे कदम पर चलकर अब हिंदी के प्रचार-प्रसार का जिम्मा संभाल रहे हैं. जी हां, अभी तक उनके जीवन में भी ऐसे कई मौके आ चुके हैं, जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए विभिन्न वैश्विक मंचों से हिन्दी में अपने प्रभावशाली भाषणों से हिन्दी प्रेमियों को गौरवान्वित किया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी हिन्दी प्रेमियों को किया गौरवान्वित
आज पूरी दुनिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहचानती है. उनके साथ-साथ दुनिया आज ‘हिंदी’ को भी जान चुकी है. पूरी दुनिया पीएम मोदी की बात बहुत गंभीरता से सुनती है. आपको यदि याद हो पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र व जी-20, COP-26 जैसे अन्य अनेक वैश्विक मंचों पर अपने प्रभावशाली संबोधन से हिन्दी को नई पहचान दिलाने में अपना अहम योगदान दिया है. आपको यह भी याद होना चाहिए कि मैडिसन स्कवायर से लेकर हाउडी मोदी तक हिन्दी में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण बेहद प्रशंसित व चर्चित रहा था.
विदेश से कई लोग हिंदी सीखने के लिए भारत आए तो कई कोविड काल में ऑनलाइन मौजूदा विकल्पों के जरिए ही हिंदी सीखने में लगे हैं. यही इस भाषा की बढ़ती लोकप्रियता का बखान करती है. ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि आज हिंदी भाषा काफी लोकप्रिय हो रही है. जी हां, अब वो दिन भी दूर नजर नहीं आता जब वैश्विक मंचों पर सभी हिंदी भाषी हिंदी में अपना भाषण देंगे.