भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है लेकिन देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए. महिलाएं काम तो करना चाहती हैं लेकिन उनके सामने एक नहीं कई चुनौतियां हैं.भारतीय शिक्षिका पिंकी नेगी के पास दो मास्टर्स डिग्री हैं और वो अब भी उस पुरानी नौकरी से प्यार करती हैं जो वह पब्लिक स्कूल में किया करती थीं. बाद में उन्होंने वही किया जो लाखों भारतीय महिलाएं हर साल करती हैं. उनकी शादी हुई और बच्चे हुए तो उन्होंने अपना करियर छोड़ दिया.
पिंकी कहती हैं, "कमाई न करने का विचार मुझे सबसे ज्यादा उस वक्त परेशान करता है जब मुझे छोटी सी छोटी चीजों के लिए पैसे मांगने पड़ते हैं." उन्होंने अपने दूसरे बच्चे के जन्म से पहले कुछ समय के लिए होम ट्यूशन की कोशिश की, लेकिन दूसरे बच्चे के बाद उन्हें वह काम भी पूरी तरह से छोड़ना पड़ा.
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से उन्होंने कहा, "यहां तक कि अगर मुझे अपने पति से कुछ मांगना पड़ता है तो यह अभी भी किसी और से मांगने जैसा ही है."
पिंका जैसा अनुभव भारत में आम है. एशिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी में महिलाएं कार्यबल का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं.
सबसे अधिक आबादी वाला देश
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के लिए तैयार है. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि भारत की जनसंख्या 14 अप्रैल को 1.43 अरब के पार हो जाएगी, उस दिन वह आबादी के हिसाब से चीन से आगे निकल जाएगा.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसका मतलब यह है कि भारत में काम करने की उम्र के लोगों की सबसे बड़ी संख्या होगी. यहां न केवल रोजगार पैदा होने चाहिए बल्कि महिलाओं के अनुकूल रोजगार की स्थिति को बढ़ावा देना भी चाहिए.
बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, गिरती प्रजनन दर और महिलाओं के अनुकूल श्रम नीतियों जैसी प्रगति के बावजूद डेटा के मुताबिक एक तिहाई से भी कम भारतीय महिलाएं काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रही हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे शादी, बच्चे की देखभाल और घरेलू काम से लेकर कौशल और शिक्षा अंतराल, उच्च घरेलू आय, सुरक्षा चिंताएं और नौकरी में कमी तक.
मैकिंजी कंसल्टिंग फर्म की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक नीतिगत परिवर्तन जो इन समस्याओं को सुधार सकते हैं - जैसे शिक्षा, बच्चों की देखभाल या लचीले कार्यस्थल का ढांचे तक और बेहतर पहुंच कामकाजी महिलाओं की संख्या को बढ़ा सकती है और देश की जीडीपी में 2025 तक अरबों डॉलर जोड़ सकती है.
ऑक्सफैम इंडिया की शोधकर्ता मयूराक्षी दत्ता कहती हैं, "श्रम बाजार से महिलाओं की अनुपस्थिति उत्पादकता को कम करती है और आय असमानता की ओर ले जाती है."
श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम
विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं ने साल 2021 में भारत के औपचारिक और अनौपचारिक कार्यबल का 23 फीसदी से कम प्रतिनिधित्व किया, जो साल 2005 में लगभग 27 फीसदी थी. वहीं इसकी तुलना में पड़ोसी देशों बांग्लादेश में 32 फीसदी और श्रीलंका में 34.5 फीसदी है.
भारत के श्रम और महिला मंत्रालयों ने इस मुद्दे से जुड़े सवालों पर जवाब नहीं दिया.
भारत सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि महिला श्रम बल भागीदारी 2020-21 में बढ़कर 25.1 फीसदी हो गई जो कि साल 2018-19 में 18.6 फीसदी थी.
35 साल की बीना तोमर जो कि घर पर रहकर पार्ट टाइम काम करती हैं, कहती हैं, "महिलाओं को घरों की देखभाल करनी होती है और हमें फुल टाइम नौकरियां खोजने में मुश्किल होती है. अगर मेरे पास (घर पर) सपोर्ट होता, तो मुझे भी काम करना पसंद है."
कामकाजी महिलाओं पर कोविड का असर
दत्ता का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कौशल विकास तक पहुंच में सुधार महत्वपूर्ण है. साथ ही उन्होंने कहा कि नियोक्ताओं को भी लैंगिक आधार पर संवेदनशील नीतियां देनी चाहिए जैसे सामाजिक सुरक्षा, बच्चे की देखभाल, माता-पिता की छुट्टी और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सुरक्षित और सुलभ परिवहन का प्रावधान.
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से श्रम बल में महिलाओं को बनाए रखने के लिए लचीले काम के घंटे जैसी प्रणालियों का इस्तेमाल करने के लिए कहा था. उन्होंने कहा था कि अगर देश "नारी शक्ति" का इस्तेमाल करता है तो वह अपने आर्थिक लक्ष्यों को तेजी से हासिल कर सकता है.
शोधकर्ता सरकार की कौशल विकास योजना जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों की ओर इशारा करते हैं, जिसने साल 2021-22 में तीन लाख से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया. उनके मुताबिक यह एक आशाजनक पहल हैं. लेकिन उनका कहना है कि इस क्षेत्र में और अधिक काम करने की जरूरत है, विशेष रूप से जब महिलाएं कोविड-19 के कारण आर्थिक प्रभाव को महसूस कर रही हैं.
ज्यादातर भारतीय महिलाएं कम कौशल वाले काम जैसे कि खेत और फैक्ट्री में लेबर और घरेलू सहायिका के तौर पर काम करती हैं. ये वो सेक्टर हैं जो कोविड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की एक रिपोर्ट में पाया गया कि कोविड के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार तो हुआ है लेकिन यह महिलाओं के लिए नौकरियों को बहाल करने में विफल रही है. रिपोर्ट के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी खोने की संभावना अधिक थी और कार्यबल में लौटने की संभावना कम थी.
पिंकी का कहना है कि जब वह नौकरी की तलाश करती हैं तो उन्हें कम वेतन वाले रोजगार मिलते हैं और कम कौशल वाले काम ऑफर किए जाते हैं. आज वह अपने घर के पास ही स्कूलों में लचीले काम के घंटों के साथ नौकरी की तलाश कर रही हैं.
पिंकी कहती हैं, "एक महिला को सबकुछ संभालना पड़ता है. घर का काम भी और बाहर भी. हमारे लिए कोई अपवाद नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि जब मैं काम पर दोबारा वापस लौटूंगी तो मेरी दिनचर्या बेहतर हो जाएगी...जितना अधिक आप बाहर जाएंगे, जितने अधिक लोगों से मिलेंगे, आपका दिमाग उतना ही तरोताजा होगा."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)