एक जून यानी कल से नए नियमों के साथ एक बार फिर कुछ नई छूट के साथ लॉकडाउन के अलगे चरण की शुरूआत होगी. लेकिन देश में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में लॉकडाउन में ढील फेज वन के तहत अलग-अलग स्थानों को खोलना उचित है या नहीं इस बारे में जीबी पंत अस्पताल, नई दिल्ली के डॉ. संजय पांडे ने कहा कि सरकार ने लॉकडाउन में जो ढील दी है उसे अनलॉक वन कहा है. यानी सरकार की मंशा गतिविधियों को सामान्य बनाने की है.इससे लोगों में वायरस के संक्रमण को लेकर भय और तनाव कम होगा.
अन्य देशों की तुलना में अपने देश के केस देखें तो हमारे यहां मोर्टेलिटी कम है। इस वजह से लोग धीरे-धीरे अपने काम शुरू कर सकते हैं, ताकि अर्थव्यवस्था के साथ ही जिंदगी भी सामान्य हो.क्योंकि कोरोना वायरस जल्दी जाने वाला नहीं है। लोगों को लॉकडाउन के इतने दिनों में मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग , जैसे तमाम बचाव के उपाय दिए गए हैं। तो जाहिर है लोग उसका नियम से पालन करेंगे. यह भी पढ़े: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधन में कहा- बुद्ध के उपदेशों पर चलकर हम कोरोना महामारी को हराने में होंगे सफल
अब जब देश में धीरे-धीरे छूट दी जा रही है ऐसे में पहले हुए लॉकडाउन से क्या फायदा हुआ इस बारे में उन्होंने कहा कि अगर लॉकडाउन नहीं होता तो हमारे देश में बहुत ज्यादा मामले होते और मोर्टेलिटी भी ज्यादा होती। लॉकडाउन की वजह से ही मामलों को कंट्रोल कर लिया गया. लॉकडाउन में लोग वायरस के प्रति गंभीर हुए। हमें अपना ट्रेंड पता चला.
आज अगर हमारे यहां 1.8 के करीब लाख केस हैं, लेकिन उनमें कितने सिम्प्टोमेटिक हैं, किनको ऑक्सीजन की जरूरत है, किसे वेंटिलेटर पर रखना है, यह सब लॉकडाउन के दौरान पता कर पाए.शुरू में इटली और अमेरिका को देख कर ऐसा लग रहा था कि भारत में स्थिति और गंभीर होगी.लॉकडाउन में इसे समझ कर धीरे-धीरे से स्थिति के हिसाब से निर्णय लिये गए।
एसिम्प्टोमेटिक से रहें सावधान लेकिन संक्रमण की संभावना कम
उन्होंने कहा कि संक्रमित होने के बाद लक्षण दिखने में 14 दिन तक का समय लगता है, लेकिन सामान्य रूप से 3-4 दिन में लक्षण आ जाते हैं.फिर भी यह लोगों के इम्यूनिटी पर निर्भर करता है कि उनके अंदर लक्षण कितने दिन में आते हैं. क्योंकि शरीर में इम्यूनिटी एंटीबॉडी बनाती है जो शरीर के अंदर वायरस से लड़ते हैं. लेकिन जांच किए बिना ये पता नहीं चल पाता है कि कोई संक्रमित है या नहीं. सिम्प्टोमेटिक लोगों में लक्षण दिखते हैं, वो खांसते हैं, छींकते हैं। लेकिन एसिम्प्टोमेटिक लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. उनसे संक्रमण होने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि वह छींकते और खांसते नहीं. इसलिए बहुत ज्यादा पैनिक होने की जरूरत नहीं। सावधानी रखें, मास्क का प्रयोग करें और सुरक्षित दूरी बना कर रखें.
रिकवरी रेट बढ़ना सकारात्मक पहलू
डॉ. संजय का कहना है कि भारत में मरीजों के रिकवरी रेट बढ़ने को लेकर कहा कि हमारे देश में रिकवरी रेट लगभग 47 प्रतिशत से ज्यादा है और रिकवरी रेट दिखाता है कि हमारे यहां संक्रमण का रेट यूरोप और यूएस के जैसे नहीं है। मामलों की संख्या, आईसीयू सपोर्ट, ऑक्सीजन सप्लाई या हॉस्पिटलाइजेशन, बाकी देशों की तुलना में हमारे यहां काफी कम है। ये एक सकारात्मक बात है.उम्मीद है कि रिकवरी रेट का प्रतिशत बढ़ेगा. लोगों में भी जागरूकता है, वायरस से कैसे लड़ना है और खुद को कैसे सुरक्षित रखना है वो समझ रहे हैं.
वहीं एक बार फिर वायरस के सामान्य और नए लक्षण को लेकर उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के लक्षण सर्दी जुकाम की तरह होते हैं, लेकिन इसमें बुखार आता है, सांस लेने में परेशानी होती है। 70-80 प्रतिशत मरीजों में या तो मरीज एसिम्प्टोमेटिक रहता है या सामान्य सर्दी जुखाम और फ्लू जैसे लक्षण होते हैं। 10-15 प्रतिशत में लोगों को गंभीर परेशानी होती है, जिसमें मरीज को सांस नहीं ले पाता, होठ नीले पड़ जाते हैं, ऑक्सीजन की कमी होने से बेचैनी होती है, या कई बार ब्रेन से संबंधित मामले दिखते हैं। सामान्य रूप से ऑक्सीजन न जाने से मरीज कंफ्यूज हो सकता है.लेकिन इस तरह के लक्षण वाले मरीज काफी कम हैं। इसलिए घबराने के जरूरत नहीं है.