Vijay Diwas 2020: 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध से जुड़े तथ्य
भारत (India) के इतिहास में गौरवगाथा लिखने वाला दिन है. आज ही के दिन भारतीय सेना ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान (Pakistan) पर विजय प्राप्त की थी. और साथ ही बांग्लादेश (Bangladesh) को ईस्ट पाकिस्तान के रूप में नई पहचान मिली थी.
भारत ,16 दिसंबर : भारत (India) के इतिहास में गौरवगाथा लिखने वाला दिन है. आज ही के दिन भारतीय सेना ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान (Pakistan) पर विजय प्राप्त की थी. और साथ ही बांग्लादेश (Bangladesh) को ईस्ट पाकिस्तान के रूप में नई पहचान मिली थी. यही कारण है कि आज ही के दिन बांग्लादेश विजय दिवस मनाता है. आज ही के दिन पूर्वी पाकिस्तान में 93,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (Commander lieutenant general) एके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था.
युद्ध के बादल 1971 की शुरुआत से छाने लगे थे, जब पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह याहिया खान ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया. इसके बाद शेख़ मुजीब को गिरफ़्तार कर लिया गया. बांग्लादेश की सड़कों और घरों पर मानो खून की होली शुरू हो गई. हर कोने से नरसंहार की खबरें आने लगीं. तभी तमाम बांग्लादेशी भाग कर भारत आने लगे. यही कारण था कि भारत ने पड़ोसी राज्य की मदद का फैसला किया और अपनी सेना से कूच करने को कहा.
अप्रैल में ही छिड़ जाता युद्ध :
यह युद्ध अप्रैल 1971 में ही छिड़ जाता, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने पाकिस्तान के जुल्मों पर विराम लगाने का फैसला कर लिया था. लेकिन जून-जुलाई में मॉनसून दस्तक देने वाला था, उस समय पूर्वी पाकिस्तान में जंग लड़ना आसान नहीं था. लेकिन फिर भी तत्कालीन थलसेना अध्यक्ष सैम मानेकशॉ युद्ध की पूरी तैयारी कर चुके थे. यह भी पढ़ें :Vijay Diwas 2020 Hindi Wishes: विजय दिवस के इन शानदार WhatsApp Stickers, Facebook Messages, GIF Images के जरिए दें प्रियजनों को शुभकामनाएं
3 दिसंबर, 1971 को जिस वक्त इंदिरा गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित करने गई थीं तभी पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय वायुसीमा मेंं घुस कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि में सैन्य स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिये. इंदिरा गांधी ने दिल्ली पहुंचते ही मंत्रिमंडल की आपात बैठक की और सेनाध्यक्ष को आगे बढ़ने की अनुमति दे दी. फिर क्या था, भारीय सेना ने अपना पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना को घुटनों पर ला दिया.
एक नज़र डालते हैं भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों पर –
• यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ, जब पाकिस्तानी वायुसेना (Air Force) ने भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर एक के बाद एक एयर-स्ट्राइक किये.
• यह इतिहास के सबसे कम दिनों तक चलने वाले युद्धों में से एक है. यह युद्ध केवल 13 दिन तक चला था और इन तेरह दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी.
• इस युद्ध के खत्म होने पर 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था.
• पाकिस्तान पर भारत की जीत के साथ पूर्वी पाकिस्तान जो आज बांग्लादेश है, आजाद हो गया.
• 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि 9,851 सैनिक घायल हुए थे.
• भारत के पास केवल एक पर्वतीय डिवाइस था, जिसके पास पुल बनाने की क्षमता नहीं थी. इसी के कारण युद्ध कुछ महीने टल गया.
• भारतीय सेना ने सबसे पहले जेसोर और खुलना पर कब्जा किया.
• 14 दिसंबर को एक गुप्त संदेश से पता चला कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में पाकिस्तानी अधिकारियों की एक बैठक होने वाली है. भारतीय सेना ने उस भवन पर बम गिराये, और मुख्य हॉल की छत उड़ा दी.
• 1971 की जंग में भारतीय वायुसेना ने मिग-21 का प्रयोग किया था. एडवांस तकनीकी से लैस मिग-21 आज भी भारतीय वायुसेना की शान माने जाते हैं. यह भी पढ़ें : देश की खबरें | मोदी ने विजय दिवस पर ‘स्वर्णिम विजय मशाल’ प्रज्ज्वलित कीं
16 दिसंबर 1971 का घटनाक्रम :
16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब को सेनाध्यक्ष मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें. उस वक्त नियाज़ी के पास ढाका में 26,400 सैनिक थे, जबकि भारतीय सेना के पास केवल 3,000 सैनिक. भारतीय सेना ढाका से 30 किलोमीटर की दूरी पर थी. सुरक्षाबल भले ही कम थे, लेकिन मनोबल बहुत अधिक था.
भारतीय सेना ने युद्ध पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली. लेफ्टिनेंट जनरल जेआर जैकब अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़ गये. वे जब नियाज़ी के कमरे में पहुंचे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. आत्म-समर्पण के दस्तावेज कमरे में पड़ी एक मेज पर रखे थे. यह भी पढ़ें : देश की खबरें | सेना ने करगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ के अवसर पर युद्ध नायकों को किया याद
शाम के करीब साढ़े चार बजे लेफिटनेंट जनरल जगदीश सिंह अरोड़ा ढाका हवाई अड्डे पर उतरे. यहीं पर जनरल अरोड़ा और नियाज़ी ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ों पर हस्ताक्षर किए. नियाज़ी ने सबसे पहले अपने बैज उतार कर मेज़ पर रखे, फिर अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया. और फिर सभी पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी बंदूकें जमीन पर रख दीं और घुटने टेक दिये.