देहरादून: उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकल पीठ ने शुक्रवार को वह फैसला सुनाया, जिसे न्यायिक पर्यवेक्षकों ने 'एक ऐतिहासिक फैसला' करार दिया, जिसमें निर्दिष्ट किया गया था कि बच्चे के भरण-पोषण के लिए केवल पिता ही नहीं, बल्कि माता-पिता दोनों जिम्मेदार हैं.
यह मामला अंशू गुप्ता द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका से संबंधित है, जिसमें 2013 के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी. उसे अपने बेटे को रखरखाव के रूप में 2,000 रुपये प्रति माह प्रदान करने का आदेश दिया गया था. वह एक सरकारी शिक्षक है, जिसकी शादी नाथू लाल से हुई थी. HC On Ghar-jamai: दामाद को माता-पिता को छोड़कर 'घर जमाई' बनने के लिए कहना क्रूरता है, हाईकोर्ट की टिप्पणी
2006 में मतभेदों के कारण उनका तलाक हो गया. उनका एक बेटा था. नाथू लाल ने वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए बच्चे के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पालन-पोषण और भरण-पोषण का खर्च वहन करने में असमर्थता जताते हुए भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की.
इसके बाद, 2013 में फैमिली कोर्ट ने महिला अंशू गुप्ता को अपने बेटे को 2,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने को कहा. अंशू उस समय 27,000 रुपये मासिक वेतन पा रही थीं. हालांकि अंशू गुप्ता ने तलाक के बाद एक अन्य व्यक्ति बाबू लाल से शादी की थी और उस शादी से उनका एक बेटा था.
उन्होंने तर्क दिया कि एक दुर्घटना में बाबू लाल की मृत्यु के बाद उन्हें अपने बेटे और बाबू लाल के माता-पिता की देखभाल करनी पड़ी. गुप्ता के वकील ने पारिवारिक अदालत के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी कि सीआरपीसी की धारा 125 भरण-पोषण शुल्क केवल पिता पर थोपती है, माताओं पर नहीं.
Minor child can claim maintenance from mother also under Section 125 CrPC: Uttarakhand High Court
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— Bar & Bench (@barandbench) August 24, 2023
तर्क का विरोध करते हुए, नाथू लाल के वकील ने कहा कि सीआरपीसी के भीतर "व्यक्ति" शब्द दोनों लिंगों को दर्शाता है और इसे "पिता" तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 में हालिया संशोधन इस बात पर जोर देता है कि "व्यक्ति" शब्द में पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं. अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि "एक माता-पिता, लिंग की परवाह किए बिना, जिनके पास पर्याप्त साधन हैं, फिर भी वे अपने नाबालिग बच्चे की उपेक्षा करते हैं या उसे प्रदान करने से इनकार करते हैं, चाहे वह वैध हो या नहीं, बच्चे के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी है."
सरकारी शिक्षक के रूप में अंशु गुप्ता का वर्तमान वेतन लगभग 1 लाख रुपये है, जिसको ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि मां को ही भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठानी होगी.