UP: यूपी में मोटे अनाजों की खेती के लिए करीब 1.5 लाख किसान होंगे प्रशिक्षित
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लखनऊ, 7 फरवरी : इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के मद्देजर खाद्यन्न एवं पोषण के लिए बेहद मुफीद मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने के लिए पूरी दुनियां शिद्दत से लग चुकी है, खेत से लेकर लैब तक. शोध से लेकर नवाचार तक इसे आम एवं खास लोगों की थाली का हिस्सा बनने का प्रयास हो रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार हालात ऐसे ही रहे तो अगले पांच साल में इसके वैश्विक बाजार में करीब 4.5 फीसद की वृद्धि हो जाएगी. भारत 2018 में ही मिलेट्स ईयर मना चुका है. भारत के ही प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर घोषित किया है. लिहाजा भारत की भूमिका इसमें सर्वाधिक अहम हो जाती है.

भारत का प्रयास भी यही है कि वह इस मामले में अगुआ बनकर उभरे. बजट में अब तक कदन्न माने जाने वाले मोटे अनाजों को श्रीअन्न का दर्जा देकर और इसके लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने जैसी घोषणाएं इसका प्रमाण हैं. इसी क्रम में योगी सरकार भी मिलेट्स को मोती बनाने में जुट गई है. अगले पांच साल की कार्ययोजना बनकर तैयार है. योजना के अनुसार इस दैरान सरकार मिलेट्स के प्रसंस्करण, पैकिंग सह विपणन के 55 केंद्र खोलेगी. खेती के उन्नत तौर तरीकों के प्रशिक्षण के लिए करीब 137300 किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा. मोबाईल आउटलेट, मंडी में अलग से जगह आवंटन, ग्राम्य विकास विभाग की मदद से गावों में इनके आउटलेट्स खोलने की योजना है. यह भी पढ़ें : मद्रास हाईकोर्ट के जज के रूप में विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

कृषि के जानकर गिरीश पांडेय कहते है कि उत्तर प्रदेश में करीब 70 फीसद लोग खेतीबाड़ी पर निर्भर हैं. इसमें से भी करीब 90 फीसद सीमांत एवं लघु किसान हैं. ये वही वर्ग है जिसकी 1960 से पहले थाली का मुख्य हिस्सा मोटे अनाज ही थे. इस वर्ग के अधिकांश अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोग हैं. परंपरागत खेती में लगने वाले इनपुट इनकी पहुंच के बाहर हैं. ऐसे में यह किसी तरह से अपने छोटे-मोटे जोत पर खेती करते हैं. इससे इनका बामुश्किल गुजारा हो पाता है. कम पानी, खाद और किसी भी भूमि पर होने वाले मोटे अनाजों की खेती इस वर्ग के लिए सबसे मुफीद होगी. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार ज्वार ग्लूटेन फ्री है और प्रोटीन का अच्छा सोर्स है. डायबिटीज के मरीजों के लिए बढ़िया भोजन है. बाजरा इसमें विटामिन बी6, फॉलिक एसिड मौजूद है. ये खून की कमी को दूर करता है.

रागी या मड़ुआ नेचुरल कैल्शियम का सोर्स है. बढ़ते बच्चे और बुजुर्गों की हड्डी मजबूत करने में मदद करता है. सांवा या सामा फाइबर और आयरन से भरपूर है. एसिडिटी, कब्जियत और खून की कमी को दूर करता है. कंगनी डिटॉक्सिफिकेशन में मदद करता है. बीपी और बेड कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है. कोदो भी फाइबर से भरपूर है. घेंघा रोग, रुस्सी की समस्या से संबंधित बीमारी और बवासीर में फायदेमंद है. कुटकी एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है. इसमें मौजूद मैग्नीशियम हेल्दी हार्ट और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है. कुट्टू अस्थमा के रोगियों के लिए फायदेमंद है. इसमें मौजूद अमीनो एसिड बाल झड़ने से रोकता है.