त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने कहा कि जिस माता-पिता को बच्चे की कस्टडी से वंचित किया गया है, उन्हें केवल मुलाकात का अधिकार नहीं, बल्कि वीडियो कॉल के माध्यम से संपर्क का अधिकार दिया जाना चाहिए. एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमरनाथ गौड़ ने कहा कि अलग-अलग माता-पिता के बीच हिरासत की लड़ाई में घसीटे गए बच्चों को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित नहीं किया जा सकता है. फैसले में कहा गया है कि-
'मुलाकात अधिकारों के अलावा 'संपर्क अधिकार' भी बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. खासकर उन मामलों में जहां माता-पिता दोनों अलग-अलग राज्यों या देशों में रहते हैं. आधुनिक युग में संपर्क के लिए वीडियो कॉलिंग होनी चाहिए. जिस माता-पिता को बच्चे की हिरासत से वंचित किया गया है, उसे अपने बच्चे से 5-10 मिनट तक बात करने का अधिकार होना चाहिए. इससे बच्चे और हिरासत से वंचित माता-पिता के बीच बंधन को बनाए रखने और सुधारने में मदद मिलेगी.' ये भी पढ़ें- HC on Husband Duties: पत्नी और बच्चों की देखभाल करना पति का धर्म और कानूनी कर्तव्य, कोर्ट ने कहा- देना ही होगा गुजरा भत्ता
Parent who has been denied custody of child should be given contact right via video call, not just visitation rights: Tripura High Court
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— Bar & Bench (@barandbench) October 26, 2023
उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने बताया कि जब माता-पिता अलग हो जाते हैं तो बच्चे के मनोवैज्ञानिक संतुलन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. न्यायालय ने कहा कि ऐसे स्तर पर, संपर्क अधिकार मुलाक़ात के अधिकार जितने ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
न्यायालय ने आगे कहा कि माता-पिता को अपने बच्चे के जीवन में 'अतिथि' बनकर नहीं रहना चाहिए, जिसके तहत उन्हें दूसरे की निगरानी में कुछ दिनों में केवल कुछ घंटों के लिए बच्चे से मिलने की अनुमति होती है.
न्यायमूर्ति गौड़ ने कहा, "तलाक और हिरासत की लड़ाई दलदल बन सकती है और यह देखकर दिल दहल जाता है कि मासूम बच्चा ही अंतिम पीड़ित होता है जो माता-पिता के बीच कानूनी और मनोवैज्ञानिक लड़ाई में फंस जाता है" न्यायाधीश ने यह भी स्वीकार किया कि तलाक और हिरासत की लड़ाई के दौरान, माता-पिता दोनों एक-दूसरे को खलनायक के रूप में पेश करने का प्रयास कर सकते हैं.