ठाणे कोर्ट ने ठुकराई रेलवे की याचिका, रेलवे स्टेशन पर जूता पॉलिश करने वालों को राहत
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ठाणे: रेलवे स्टेशनों पर काम करने वाले मोची मजदूरों (Shoeshine Workers) के लिए राहत की खबर है. ठाणे जिला सत्र न्यायालय (Thane Court) ने मध्य रेलवे (Central Railway) की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें ठाणे और मुंब्रा रेलवे स्टेशनों पर नौ मोची मजदूरों को काम करने से रोकने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इस फैसले में रोजगार के महत्व को ध्यान में रखते हुए कहा कि जब तक कोई नया टेंडर नहीं आता, तब तक इन मजदूरों को काम करने से रोका नहीं जा सकता.

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रेलवे की याचिका क्यों हुई खारिज?

रेलवे ने यह याचिका तब दायर की थी, जब 2023 में निकाले गए टेंडर को किसी भी Shoeshine सोसाइटी ने सफलतापूर्वक हासिल नहीं किया. रेलवे का कहना था कि जब टेंडर ही नहीं है, तो इन मजदूरों को प्लेटफॉर्म पर काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

हालांकि, कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इन मजदूरों की रोजी-रोटी इसी काम पर निर्भर है, और जब तक नया टेंडर नहीं आता, तब तक इन्हें हटाया नहीं जा सकता.

कोर्ट के प्रधान जिला न्यायाधीश एस.बी. अग्रवाल ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि 2007 में पारित आदेश के अनुसार, इन नौ मजदूरों को काम करने की अनुमति दी गई थी. लेकिन, भिमा शूशाइन सोसाइटी (Bhima Shoeshine Society) द्वारा जीता गया टेंडर अमान्य कर दिया गया और रेलवे ने कोई नया टेंडर जारी नहीं किया. ऐसे में स्थिति जस की तस बनी हुई है, इसलिए मजदूरों को काम करने से रोकने का कोई ठोस आधार नहीं बनता.

कौन हैं ये मजदूर और क्यों उठी उनके रोजगार पर बहस?

ठाणे और मुंब्रा रेलवे स्टेशनों पर मोची मजदूर पिछले 20 सालों से जूते चमकाने और मरम्मत का काम कर रहे हैं. रेलवे की अनुमति से वे यह काम कर रहे थे, लेकिन 1 नवंबर 2023 को रेलवे ने एक पत्र जारी कर उनसे उनकी आईडी कार्ड और बैज जमा करने को कहा. यह फैसला रेलवे द्वारा नए टेंडर की प्रक्रिया शुरू करने के बाद लिया गया था.

हालांकि, जब टेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई, तो भिमा शूशाइन सोसाइटी को टेंडर मिला, लेकिन वह रेलवे की शर्तों को पूरा नहीं कर पाई. इस कारण रेलवे ने टेंडर रद्द कर दिया और कोई नया टेंडर जारी नहीं किया. इसी बीच, भिमा शूशाइन सोसाइटी के अध्यक्ष उमेश दुलारचंद राम ने रेलवे पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने 15 लाख रुपये की टेंडर राशि जमा कर दी थी, लेकिन रेलवे ने बिना ठोस कारण के टेंडर रद्द कर दिया.

रेलवे की दलील और कोर्ट का जवाब

रेलवे ने अदालत में दावा किया कि 2001 में एक टेंडर निकाला गया था, जिसे श्रमिक लेदर इक्विपमेंट एंड हैंडग्लव्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसाइटी को तीन साल के लिए दिया गया था. यह कॉन्ट्रैक्ट बाद में बढ़ाया गया, लेकिन 2007 में इसे रद्द कर दिया गया. इसके बाद, मगासवर्गीय बूट पॉलिश वर्कर्स सोसाइटी को यह काम अस्थायी रूप से सौंपा गया था.

रेलवे का कहना था कि इस दौरान भिमा शूशाइन सोसाइटी को फिर से टेंडर दिया गया, लेकिन वह श्रमिकों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाई, इसलिए दूसरी बार भी टेंडर रद्द कर दिया गया. इसी आधार पर रेलवे ने इन नौ मजदूरों को प्लेटफॉर्म पर काम करने से रोकने की मांग की थी.

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि जब तक नया टेंडर जारी नहीं होता, तब तक इन मजदूरों को काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि उनकी रोजी-रोटी प्रभावित न हो.