
Tahawwur Rana Extradition: 2008 की वो रात कोई हिंदुस्तानी कभी नहीं भूलेगा, जब समंदर के रास्ते आए 10 आतंकियों ने मुंबई को हिला कर रख दिया था. गोलियां, धमाके, चीख-पुकार – सब कुछ किसी हॉरर फिल्म जैसा लग रहा था, लेकिन ये हकीकत थी. इस हमले के पीछे सिर्फ वो चेहरे नहीं थे जो AK-47 लेकर बाहर थे, असली खेल तो परदे के पीछे चल रहा था – और वहीं से निकलता है एक नाम – तहव्वुर हुसैन राणा.
कौन है तहव्वुर राणा?
राणा पाकिस्तान में पैदा हुआ. पढ़ा लिखा – आर्मी में डॉक्टर भी बना. यानी ऊपर से तो सब कुछ एकदम "शरीफ" बैकग्राउंड. फिर कनाडा गया, और बाद में अमेरिका पहुंचा. शिकागो में उसने एक इमीग्रेशन सर्विस खोली – Global Immigration Services.
लोग समझते रहे कि ये आदमी विदेश जाने वालों का वीजा, पासपोर्ट और डॉक्युमेंट्स ठीक करता है. लेकिन असल में ये आदमी आतंकियों की एंट्री का गेटवे बन चुका था – और खुद उसे अंदाजा भी नहीं था कि एक दिन उसका नाम इंडिया के सबसे बड़े आतंकी हमले में जुड़ जाएगा.
तहव्वुर राणा का पुराना यार- डेविड हेडली
अब आते हैं उस आदमी पर जिसने इस पूरी कहानी को भड़काया – डेविड कोलमैन हेडली, उर्फ़ दाऊद गिलानी. अमेरिका में जन्मा, पाकिस्तान में पला-बढ़ा. राणा का बचपन का दोस्त. मिलिट्री स्कूल में साथ पढ़े. और जैसे ही शिकागो में दोबारा मिले, लगा जैसे पुरानी यारी फिर ताज़ा हो गई, लेकिन दोस्ती की चाय के साथ-साथ उबल रहा था एक भयानक प्लान.
हेडली लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम कर रहा था. उसकी ड्यूटी थी – इंडिया में जासूसी करना, टारगेट्स की जानकारी इकट्ठा करना और हमले की तैयारी कराना. लेकिन उसे चाहिए था एक मजबूत कवर – ताकि भारत में घुस सके, बिना शक के. और यहीं पर राणा उसके काम आया.
‘बिजनेस ट्रिप’ का टाइटल, लेकिन मकसद था तबाही
राणा ने हेडली को अपनी कंपनी का एजेंट बना दिया. इंडिया के लिए वीजा दिलवाया, फर्जी डॉक्युमेंट्स बनवाए, और यहां तक कि कहा गया कि वो 'पब्लिक रिलेशन' के लिए इंडिया जा रहा है.
हेडली मुंबई पहुंचा – और उसने एक एक लोकेशन की रेकी की. ताज होटल में ठहरा, सीएसटी स्टेशन गया, और ये सब करते हुए फोटोज खींचता रहा, नोट्स बनाता रहा – ताकि हमला करने वाले आतंकियों को बिल्कुल साफ जानकारी मिल सके: कहाँ एंट्री है, कहाँ सीढ़ियां हैं, कहाँ सुरक्षाकर्मी खड़े रहते हैं.
और राणा? वो भी उसी वक्त मुंबई में था. किसी को भनक तक नहीं लगी कि एक “इमीग्रेशन ऑफिसर” दिखने वाला आदमी, दरअसल भारत की सबसे खतरनाक साजिश का पार्ट है.
एक नहीं, दो-दो प्लान – डेनमार्क की भी तैयारी थी
मुंबई अटैक के बाद भी कहानी खत्म नहीं हुई थी. हेडली और राणा का अगला टारगेट था डेनमार्क का वो अखबार जिसने पैगंबर मोहम्मद के कार्टून छापे थे.
ये प्लान तो और खतरनाक था – ऑफिस में घुसकर जर्नलिस्ट्स की हत्या करनी थी, वीडियो रिकॉर्डिंग करनी थी, और दुनिया भर में दहशत फैलानी थी.
राणा ने हेडली को फिर वही सपोर्ट दिया – वीजा, पेपरवर्क, और यहां तक कि खुद का नाम इस्तेमाल करने की इजाज़त.
अब ये कोई मामूली गुनाह नहीं था. ये इंटरनेशनल टेरर नेटवर्क था – जिसमें दो 'कूल' दिखने वाले दोस्त, पूरी दुनिया के लिए बम बनकर घूम रहे थे.
जैसे ही सच सामने आया, अमेरिका भी चौंक गया
2009 में अमेरिका की जांच एजेंसियों ने हेडली को गिरफ्तार कर लिया. और फिर वो हर चीज़ उगलता चला गया – कैसे मुंबई हमले की रेकी की, राणा की मदद से इंडिया आया, और कैसे डेनमार्क मिशन की प्लानिंग चल रही थी.
अमेरिका ने राणा को भी पकड़ा – और केस चला. हेडली ने गवाही दी कि राणा को मुंबई हमले के बारे में पहले से सब पता था. हालांकि राणा ने डेनमार्क प्लान में हिस्सेदारी मानी, लेकिन मुंबई अटैक से इंकार करता रहा. 2013 में उसे डेनमार्क प्लान के लिए 14 साल की सजा हुई.
तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण
भारत ने तहव्वुर राणा की प्रत्यर्पण की मांग 2018 में की थी. कानूनी लड़ाई के बाद फरवरी 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने औपचारिक रूप से राणा के भारत प्रत्यर्पण की घोषणा की. अमेरिकी अदालत ने राणा को भारत भेजने का फैसला किया, लेकिन राणा ने अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी, जिससे प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया.
इस हाई-प्रोफाइल मामले की सुनवाई दिल्ली स्थित विशेष NIA कोर्ट में होगी. फरवरी 2024 में पटियाला हाउस कोर्ट ने मुंबई हमलों से संबंधित ट्रायल रिकॉर्ड वापस मंगवाए थे. यह फैसला NIA की उस याचिका पर लिया गया था, जिसमें मुंबई से सभी केस रिकॉर्ड दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग की गई थी. अब चूंकि केस की सुनवाई दिल्ली में होगी, राणा को मुंबई नहीं ले जाया जाएगा.
जब दोस्ती, गुनाह बन जाए
इस कहानी में दो दोस्त हैं – पढ़े-लिखे, इज्ज़तदार दिखने वाले. लेकिन जब इनकी दोस्ती का इस्तेमाल दहशत फैलाने में हुआ, तो पूरी दुनिया कांप उठी. तहव्वुर राणा ने ना बंदूक चलाई, ना बम फेंका – लेकिन जो किया, वो उससे कम भी नहीं था. कभी-कभी एक फॉर्म साइन करना भी इतना बड़ा जुर्म बन जाता है कि उस पर सैकड़ों लाशों का वजन होता है.