तीन वर्ष पूर्व 28 सितंबर 2016 की घटा घुप अंधेरी रात...दुश्मन के रडारों को धता बताते हुए 35 हजार फिट ऊंचे आसमान में तैयार 30 जाबांज भारतीय कमांडो... अत्याधुनिक कलाश्निकोव रायफल, टेवर्स, रॉकेट प्रोपेल्ड गन्स जैसे अत्याधुनिक एवं मारक हथियारों से लैस... किसी भी पल पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के पहाड़ी इलाके में उतरने को कृतसंकल्प... सिग्नल मिलते ही वे तेजी मगर बेहद खामोशी के साथ 35 हजार फिट ऊंचाई से नीचे उतरते हैं... उधर भारतीय सेना के जांबाज स्पेशल फोर्स के सात जमीनी दस्ते एलओसी पारकर पाकिस्तानी बैरीकेड्स से रेंगते हुए आगे बढ़ते हैं. राष्ट्रहित में कुछ भी कर गुजरने का माद्दा लिए ये आठों घातक जांबाजों की टीम पिन ड्राप साइलेंट के साथ अपने लक्ष्य पर पहुंचते हैं... तभी उन्हें एक सिग्नल मिलता है... और देखते ही देखते शांत निरव इलाका बम और गनों के धमाके से गूंज उठता है. चारों तरफ बारूदी धुआं और गोलियों की आवाज... पलक झपकते सारे आतंकी नेस्तनाबूद हो जाते हैं. आखिर भारतीय जांबाज इस तरह सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए क्यों बाध्य हुए? तीन वर्ष पूर्व आज ही के दिन क्यों और कैसे घटी यह घटना? आइये जानते हैं...
बात 18 सितंबर 2016 की मध्य रात्रि की है. भारतीय जांबाज सेना की 12वीं ब्रिगेड के एडमिनिस्ट्रेटिव स्टेशन पर सब कुछ सामान्य चल रहा था. अचानक इस स्टेशन पर आतंकियों द्वारा हमला होता है, भारतीय फौज इसके पहले कि हमले का जवाब देती, देखते-देखते दिन भर ड्यूटी कर आराम की नींद सो रहे 19 भारतीय जवान शहीद हो जाते हैं. भारतीय जवानों के जवाबी हमले में आतंकवादी भी मारे जाते हैं. इन्हीं मारे गये आतंकवादियों से प्राप्त जीपीएस सेट्स से पता चलता है कि इस कायरता पूर्ण हमले में पाकिस्तानी सेना का भी हाथ था. उरी आतंकी हमले में पकड़े गये दो स्थानीय गाइड्स ने भी कुबूला कि पाकिस्तानी सेना ने इन हमलावरों को भारतीय सेना में घुसने में मदद पहुंचाई थी. इस घटना से पूरा देश पाकिस्तान की नापाक हरकत से क्रोध से भर गया था. सभी के मन में ईंट का जवाब पत्थर से देने की हो रही थी. यह भी पढ़े-लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने कहा- 2016 में हुई थी पहली सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक हमारी बड़ी उपलब्धि
इस उरी हमले के तीन दिन बाद भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर पाकिस्तान उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब कर उसे उरी हमले में पाकिस्तान के जुड़ने की सारे सबूत सौपते हैं. अगले दिन इस्लामाबाद से सारे सबूतों को गलत ठहराते हुए पाकिस्तान को पाक-साफ बताने की कोशिश होती है.
इस वर्ष 22 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ अपने भाषण में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी को हीरो की तरह प्रस्तुत करते हैं. भारतीयों का गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. अब जरूरत थी ईंट का जवाब पत्थर से देने की. भारतीय जनता और सेना के साथ प्रधानमंत्री पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कटिबद्ध होते हैं.
भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल दलवीर सिंह सुहाग और डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह भारतीय प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को उरी हमले के जवाब में ठोस कार्रवाई के सभी सैन्य विकल्पों की जानकारी देते हैं. भारतीय मीडिया से जवाबी कार्रवाई की खबरें पाकिस्तान तक पहुंचती है तो वे सतर्क हो जाते हैं. वे एलओसी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर न केवल अपने रडार को चुस्त दुरुस्त करते हैं, बल्कि चप्पे-चप्पे पर पाकिस्तानी सेना का जाल-सा बिछा दिया जाता है. यही नहीं जम्मू कश्मीर से पंजाब के आकाशीय क्षेत्रों में भी एयरबॉन वारनिंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट को सक्रिय कर दिया जाता है.
भारत सेना उनकी एक एक हरकतों पर नजर रखे हुए थी. एक सप्ताह की खामोशी के बाद अंततः 28 सितंबर की रात वह पल भी आ गया, जिसकी उम्मीद पूरे देश ने संजो रखी थी. पीओके के लाइन ऑफ कंट्रोल के दो से तीन किमी के दायरे में चल रहे आतंकी ठिकानों भिंबर, हॉटस्प्रिंग, तत्तापानी, केल, लीपा सेक्टरों में सैन्य कार्रवाई का लक्ष्य रखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पल-पल की खबरें रखे हुए थे. ऊधमपुर के उत्तरी कमान से 200 पैराकमांडो ने हेलिकॉप्टर से उड़ान भरी और इन ठिकानों पर उतर कर मोर्चा संभाला. 29 सितंबर की रात 12.30 से शुरू हुआ सर्जिकल स्टाइक प्रातःकाल 04,30 बजे तक चली. इस सैन्य कार्रवाई में बड़ी संख्या में आतंकियों और उनका समर्थन करनेवाले पाकिस्तानी सैनिक मारे गये. अपने कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद सभी भारतीय सैनिक सुरक्षित अपने-अपने ठिकाने पर लौट आये थे. पाकिस्तानी सेना सारी तैयारियों के बावजूद भारतीय सेना के हमले को न रोक पाने के कारण न केवल निराश थी बल्कि हमेशा के लिए सहम भी गयी थी. क्योंकि उनके पास भारतीय सैन्य क्षमता का जवाब देने की शक्ति खत्म हो चुकी थी.