नई दिल्ली, 23 मार्च : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को आदेश दे दिया है कि बैंकों ने यदि मोरेटोरियम अवधि (Moratorium Period) के दौरान ब्याज-पर-ब्याज लिया है तो वह या तो पैसा लौटाए या फिर उसे समायोजित करे. कोर्ट ने कर्जधारियों के हक में फैसला सुनाते हुए लिए गए ब्याज पर ब्याज को अगली ईएमआई में ही समायोजित करने का फैसला सुनाया है. जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, एम.आर. शाह और संजीव खन्ना की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ करने के तर्क को नहीं समझ पा रही है. साथ ही सरकार ने यह सीमा भी क्यों तय की है, इसका कारण भी नहीं बताया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि वह व्यापार और वाणिज्य के मामलों में बीच में नहीं आएगा और इस बात पर जोर दिया कि जज वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ नहीं होते हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा कोविड महामारी (Covid epidemic) को देखते हुए 6 महीने के लिए और मोरेटोरियम पीरियड देने के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि सरकार बैंकों को यह निर्देश नहीं दे सकती है कि वे लॉकडाउन की अवधि के दौरान ऋण पर ब्याज माफ कर दे. पीठ ने लघु उद्योग औद्योगिक संघ बनाम भारत संघ के मामले में यह फैसला सुनाया है. यह भी पढ़ें : Sachin Waze Case: पढ़े सचिन वाजे की हैरतअंगेज कहानी, कैसे मुंबई के लग्जरी होटल से चलाता था वसूली रैकेट
सरकार ने इस मामले में 17 दिसंबर 2020 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा, "आर्थिक और राजकोषीय नीतियों की के वल इसलिए न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती कि कोई एक क्षेत्र इन नीतिगत निर्णयों से संतुष्ट नहीं है."