नई दिल्ली: अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर चल रही बहस के बीच सोमवार सुबह शुरू सुनवाई को अब जनवरी तक टाल दिया गया है. सोमवार को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई मात्र 3 मिनट में ही टल गई. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद पर जनवरी तक सुनवाई टालने का फैसला किया है. मामले में नियमित सुनवाई की तारीख अब जनवरी में तय होगी. मिली जानकारी के अनुसार अभी यह तय नहीं कि यही बेंच आगे की सुनवाई करेगी, या अब नई बेंच का गठन होगा. चीफ जस्टिस रंरज गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के.एम जोसफ की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.
Supreme Court adjourns the matter till January to fix the date of hearing in #Ayodhya title suit pic.twitter.com/2ArhDMMjum
— ANI (@ANI) October 29, 2018
अयोध्या जमीन विवाद एक ऐसा विवाद है, जिसकी आंच में भारतीय राजनीति आजादी के बाद से ही झुलसती रही है. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी, जिसका मुकदमा आज भी लंबित है.
क्या है अयोध्या विवाद
1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए. अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते हैं. ये कहा जाता है कि ये मस्जिद मुगल बादशाह बाबर ने बनवाई थी, जिसकी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था.
ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर ये मस्जिद बनाई गई वहां भगवान राम का मंदिर था और उसे तोड़कर ही बाबर ने यहां पर मस्जिद बनवाई थी. लेकिन मुख्य रूप से इस विवाद की शुरुआत 1949 से हुई, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं. हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि यहां पर किसी ने मूर्तियां रखी हैं.
मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय के यूपी के सीएम जी. बी. पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा. सरकार ने मस्जिद से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के. के. नायर ने धार्मिक भावनाओं के आह्त होने और दंगे भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई. इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करते हुए यहां ताला लगा दिया.
2010 में दिया था यह फैसला
बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन जज की बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी.