श्रीनगर: श्रीनगर में करीब तीन दशक से अधिक समय के अंतराल के बाद शिया समुदाय ने गुरुवार को गुरुबाजार से डलगेट मार्ग पर मुहर्रम जुलूस निकाला, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया. जम्मू कश्मीर में 1990 के बाद पहली बार शिया मुसलमानों का मुहर्रम जुलूस श्रीनगर के लाल चौक और आसपास के इलाकों से निकला. गुरुवार को हजारों शिया मुसलमान इस जुलूस में शामिल हुए. 1990 में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही श्रीनगर के लाल चौक और आसपास के इलाकों में मुहर्रम के जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगाया गया था. जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद समुदाय के सदस्यों ने जुलूस निकाला. Muharram 2023: यौमे आशूरा क्या है? जानें इसका महत्व एवं शिया और सुन्नी मुसलमान कैसे मनाते हैं इस दिन को?
अधिकारियों ने व्यस्त लाल चौक क्षेत्र से गुजरने वाले मार्ग पर जुलूस के लिए सुबह छह बजे से आठ बजे तक दो घंटे का समय दिया था इसलिए लोग सुबह करीब साढ़े पांच बजे ही गुरुबाजार में एकत्र हुए. 90 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद फैलने के बाद मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला गया था. कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार ने संवाददाताओं को बताया कि जुलूस के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई थी.
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VIDEO | Muharram procession passes through the Lal Chowk area in Srinagar, Kashmir after being banned for 3 decades in the state. pic.twitter.com/9bIbUHUDMG
— Press Trust of India (@PTI_News) July 27, 2023
#WATCH Muharram procession passes through Kashmir's Lal Chowk. After a gap of more than three decades Jammu & Kashmir allows Muharram procession. The administration, however, has set a time window for the procession. #Muharram #JammuAndKashmir #lalchowk #Muharram2023 #procession pic.twitter.com/GYEUPVklUQ
— E Global news (@eglobalnews23) July 27, 2023
विजय कुमार ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों से शिया समुदाय जुलूस की अनुमति की मांग रह रहे थे. प्रशासन द्वारा निर्णय लेने के बाद हमने पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की हुई थी.’’ तीस से अधिक वर्षों में यह पहली बार है कि इस मार्ग पर मुहर्रम के आठवें दिन के जुलूस को अनुमति दी गई है.
कश्मीर के मंडलायुक्त वीके भिदुरी ने बुधवार को कहा था कि चूंकि जुलूस कार्यदिवस पर निकाला जा रहा है, ऐसे में इसके लिए सुबह छह बजे से सुबह आठ बजे तक का समय तय किया गया है ताकि लोगों को असुविधा का सामना न करना पड़े. उन्होंने कहा था, ‘‘हमारे शिया भाइयों की लंबे समय से मांग थी कि गुरुबाजार से डलगेट तक पारंपरिक जुलूस की अनुमति दी जाए. पिछले 32-33 वर्षों से इसकी अनुमति नहीं थी.’’