नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से स्थापित समलैंगिक किए जाने वाले यौन संबंध अपराधों को अपराध की श्रेणी में रखा जाय या नहीं IPC की धारा 377 मामले पर कल 6 सितम्बर को अपना फैसला सुनाएगा. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ के बीच सुनाया जाएगा. इस मामले में कोर्ट में 17 जुलाई को सुनवाई होने के बाद अदालत ने अपना फैसला ना सुनाते हुए फैसले को अपने पास सुरक्षित कर लिया था.
बता दें कि समलैंगिकता को अपराध नहीं मानने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध कर रहे पक्षकारों ने कोर्ट से आग्रह किया था कि धारा 377 का भविष्य संसद पर छोड़ दिया जाए. इस मामले में उनका कहना है कि कि समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर इसका देश पर बहुत ही बड़ा असर पड़ेगा. इससे देश में एड्स जैसे खतरनाक बीमारियां फैलना शुरु हो जाएगी.
देखा जाय तो 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अपने फैसले में इसको अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. लेकिन बाद में 2013 में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने इसे फिर से अपराध करार दिया. जिस पर सुनवाई हो रही है.
धारा 377 क्या है
यह धारा अंग्रेजों द्वारा 1862 में लागू किया गया था. इसके तहत कोई अप्राकृतिक तरीके से किसी से संबंध बनाता है तो उसे 10 साल तक की जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकती है. यह अपराध गैरजमानती भी है.