नई दिल्ली, 7 मई: कई एलजीबीटीक्यू अधिकार कार्यकर्ताओं ने समलैंगिक विवाह पर आरएसएस के एक निकाय के सर्वेक्षण को ''खतरनाक और भ्रामक'' करार दिया है तथा संगठन पर ''गलत जानकारी फैलाने'' का आरोप लगाया है.
राष्ट्र सेविका समिति (एक महिला संगठन जो आरएसएस के समानांतर है) से संबद्ध संवर्धिनी न्यास के सर्वेक्षण के अनुसार, कई चिकित्सकों और संबद्ध चिकित्सा पेशेवरों का मानना है कि समलैंगिकता ‘एक विकार’ है तथा यदि समलैंगिक विवाह को वैध किया गया तो समाज में यह विकार और बढ़ जाएगा.
लेखक और समान अधिकारों के हिमायती शरीफ रांगनेकर ने कहा, ‘‘इस तरह का अध्ययन एक अनभिज्ञ समाज के लिए खतरनाक और भ्रामक है. यह बुनियादी गरिमा के खिलाफ है और मानहानि के बराबर है. ये चिकित्सक कौन हैं... इनके लाइसेंस रद्द किए जाने चाहिए.’’
उन्होंने कहा, "चाहे वह योग संस्थान हो जिसकी स्थापना 1918 में हुई थी या इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी, दोनों ने ही यह सुनिश्चित किया है कि समलैंगिकता वैध और सामान्य है, यह प्राकृतिक तथा जन्मजात है."
कार्यकर्ता हरीश अय्यर ने कहा कि दुनिया भर और भारत के मनोरोग निकायों ने यह सुनिश्चित किया है कि समलैंगिकता "विचलन नहीं, बल्कि भिन्नता" है. उन्होंने कहा कि यह किसी भी उचित संदेह से परे है. अय्यर ने सरकार से इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने की भी अपील की.
कार्यकर्ता और माकपा नेता सुभाषिनी अली ने भी सर्वेक्षण पर हमला किया. उन्होंने ट्वीट किया, "यह मूर्खतापूर्ण अवैज्ञानिक, अमानवीय है." राष्ट्र सेविका समिति से संबद्ध एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा था कि सर्वेक्षण के निष्कर्ष देश भर में एकत्रित 318 प्रतिक्रियाओं पर आधारित हैं, जिसमें आधुनिक विज्ञान से लेकर आयुर्वेद तक आठ अलग-अलग पद्धतियों के चिकित्सक शामिल हैं.
संवर्धिनी न्यास के अनुसार, सर्वेक्षण के प्रति अपनी प्रतिक्रिया में लगभग 70 प्रतिशत चिकित्सकों और संबद्ध चिकित्सा पेशेवरों ने कहा कि "समलैंगिकता एक विकार है", जबकि उनमें से 83 प्रतिशत ने "समलैंगिक संबंधों से यौन रोग के संचरण’’ की पुष्टि की.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी दिए जाने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
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