मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा की. शीर्ष बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. हालांकि इससे मंहगाई की मार झेल रही जनता को थोड़ी राहत जरुर मिलेगी. पिछली बार आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट 25 बेसिस प्वाइंट्स (0.25%) बढ़ाया था. जिसके बाद रेपो रेट 6.25 फीसद से बढ़कर 6.5% हो गई. इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो को 6 फीसद से बढ़ाकर 6.25 फीसद कर दिया था.
ज्ञात हो कि आरबीआई जिस दर पर बैंकों को कर्ज देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है. जिसके बाद ही बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को कर्ज मतलब लोन देते हैं. इसलिए इसके बढ़ने से सभी तरह के लोन महंगा होने की आशंका है. वहीं रिवर्स रेपो रेट का मतलब है वह दर जिसपर बैंकों को अपने जमा पैसे पर आरबीआई ब्याज देती है. बाजार में कैश ज्यादा हो जाने पर अमूनन आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है. जिससे बैंक आरबीआई के पास ज्यादा कैश दें और बाजार से नकदी खुद कम हो जाए.
चौथी द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा की मुख्य बातें-
# रिजर्व बैंक ने मुख्य नीतिगत दर (रेपो) को 6.50 प्रतिशत पर कायम रखा.
# रिवर्स रेपो दर 6.25 प्रतिशत, बैंक दर 6.75 प्रतिशत तथा सीआरआर 4 प्रतिशत पर.
# खुदरा मुद्रास्फीति के अक्टूबर-मार्च के दौरान बढ़कर 3.8 से 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान.
# चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के अनुमान को 7.4 प्रतिशत पर कायम रख.
# वैश्विक आर्थिक गतिविधियां असमतल हैं, परिदृश्य को लेकर अनिश्चितता.
# पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क कटौती से खुदरा मुद्रास्फीति कम होगी.
# तेल कीमतों में बढ़ोतरी से खर्च योग्य आय पर असर पड़ेगा, कंपनियों का मुनाफा मार्जिन भी प्रभावित होगा.
# कच्चे तेल की कीमतों के और ऊपर जाने का दबाव.
# वैश्विक, घरेलू वित्तीय परिस्थितियां सख्त, निवेश गतिविधियां प्रभावित होंगी.
# केंद्र और राज्यों के स्तर पर राजकोषीय लक्ष्यों से चूक से मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर असर होगा. साथ ही इससे बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा.
# अगले कुछ माह के दौरान मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर नजदीकी नजर रखने की जरूरत. इसके ऊपर की ओर जाने के कई जोखिम.
# व्यापार का लेकर तनाव, उतार-चढ़ाव और कच्चे तेल के बढ़ते दाम और सख्त होती वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों की वजह से वृद्धि और मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर जोखिम.
# केंद्रीय बैंक ने घरेलू वृहद आर्थिक बुनियाद को और मजबूत करने पर जोर दिया.
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के चलते जानकारों ने पहले ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना जताई थी. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर आरबीआई के फैसले पर दिखना तय माना जा रहा था. रिजर्व बैंक यदि आज मुख्य नीतिगत दरों में वृद्धि करता तो यह लगातार तीसरी बार वृद्धि होती.