नई दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में बुधवार को गन्ना पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना उत्पादकों को 55 रुपये प्रति टन की दर से अनुदान देने का फैसला लिया गया है. यह अनुदान किसानों को पूर्व की भांति गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा, जिसका मकसद चीनी मिलों को किसानों को गन्ने बकाये के भुगतान में वित्तीय सहायता प्रदान करना है.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी मीडिया को देते हुए कहा, "इस साल गन्ने की बंपर पैदावार है. गन्ने की लागत कम करते हुए सरकार ने 5.5 रुपये प्रति क्विं टल की दर से पेराई किए जाने वाले गन्ने पर मिलों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का फैसला किया है."
सीसीईए के फैसले के मुताबिक, वित्तीय सहायता मिलों की तरह से सरकार द्वारा सीधे गन्ना उत्पादकों को भुगतान किया जाएगा और इसका समायोजन गन्ने के एफआरपी में किया जाएगा. फैसले के अनुसार वित्तीय सहायता उन्हीं मिलों को प्रदान की जाएगी जो सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता शर्ते पूरी करेंगी.
सरकारी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि देश में इस साल चीनी का उत्पादन खपत से ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आई है. चीनी के दाम में गिरावट के कारण चीनी मिलें नकदी की संकट से जूझ रही हैं और किसानों का बकाया 19,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है. लिहाजा, चीनी कीमतों में स्थिरता लाने और नकदी की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार ने पिछले तीन महीनों में कई कदम उठाए हैं.
सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए चीनी पर आयात शुल्क 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया. साथ ही, फरवरी और मार्च 2018 में चीनी उत्पादकों पर प्रतिगामी स्टॉक सीमा लगा दिया और चीनी निर्यात पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया.।
सरकार का सबसे बड़ा फैसला इस साल मिलों के लिए 20 लाख टन चीनी निर्यात का न्यूनतम सांकेतिक अनिवार्य कोटा निर्धारित करना रहा है. इससे पहले 2015 में भी सरकार ने मिलों के लिए इसी तरह का 40 लाख टन चीनी निर्यात का अनिवार्य कोटा तय किया था.
इससे पहले 2015-16 में भी सरकार ने मिलों को राहत देते हुए गन्ना पर 45 रुपये प्रति टन अनुदान दिया था.