Ram Temple Trust Members: अयोध्या में विशाल और भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Shri Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra) का ऐलान कर दिया है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में 15 सदस्य होंगे. इनमें 9 स्थायी और 6 नामित सदस्य होंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'शीर्ष अदालत के निर्देश के आधार पर मेरी सरकार ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल पर विशाल और भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए एक वृहद योजना को स्वीकृति दे दी है. इसका निर्माण कार्य देखने के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नाम से एक ट्रस्ट गठित किया गया है. गठन के बाद ट्रस्ट को केंद्र सरकार की ओर से 1 रुपये का नकद दान भी मिला. यह ट्रस्ट को मिला पहला दान बताया जा रहा है.
इस ट्रस्ट में सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर की पैरवी करने वाले सीनियर एडवोकेट केशवन अय्यंगार परासरण, जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिषपीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज (इलाहाबाद), जगदगुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थ जी महाराज (उडुपी के पेजावर मठ से), युगपुरुष परमानंद जी महाराज (हरिद्वार), स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज (पुणे) और विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र (अयोध्या) शामिल हैं.
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में 15 सदस्य
इसके अलावा अयोध्या से डॉक्टर अनिल मिश्रा, पुणे के गोविंद देव गिरि, कामेश्वर चौपाल और निर्मोही अखाड़ा के धीरेंद्र दास का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है. इस ट्रस्ट के पास राम मंदिर निर्माण और इससे जुड़े विषयों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय करने के अधिकार होंगे. ट्रस्ट का रजिस्टर्ड ऑफिस दिल्ली में होगा. वहीं IAS अधिकारी, जो संयुक्त सचिव के पद से नीचे नहीं होगा राम मंदिर ट्रस्ट में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करेगा.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र में एक प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नामित किया जाएगा जो हिंदू आईएएस अधिकारी होगा. इसके अलावा अयोध्या के डीएम भी ट्रस्टी होंगे. यदि मौजूदा डीएम हिंदू नहीं है तो एडिशनल मजिस्ट्रेट ट्रस्टी होंगे. राम मंदिर परिसर के प्रशासन के विकास के लिए अध्यक्ष का चयन भी न्यासी बोर्ड द्वारा किया जाएगा.
गौरतलब है कि बीते 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित भूमि पर फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से चल रहे इस मामले में विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को देने का फैसला किया गया था, जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या के बाहरी क्षेत्र में 5 एकड़ जमीन देने की बात कही थी.