Quit India 2021: साल 1857 से 1947 तक ब्रिटिश हुकूमत से हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अनगिनत आंदोलन किये. लेकिन 9 अगस्त 1942 में गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के रूप में ‘भारत-छोड़ो’ आंदोलन का बिगुल फूंका. गांधी जी के ‘करो या मरो’ की इस लड़ाई से बौखलाकर अंग्रेज हुकूमत ने संपूर्ण हिंदुस्तान में भयंकर नरसंहार किया, स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में ठूंसकर जानवरों से बदतर सुलूक किया गया, लेकिन देश के नाम मर मिटने वाले क्रांतिकारियों के जोश-ओ-जुनून को वे कम नहीं कर सके. परिणामस्वरूप 3 साल के भीतर 15 अगस्त 1947 को उन्हें भारत छोड़ना पड़ा. आज हम उसी ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की 79वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. आइये जानें क्या और क्यों छेड़ा गया था यह महा जनआंदोलन.
भारतीय इतिहास में 9 अगस्त 1942 का दिन हर भारतीय के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कहा जायेगा, जब महात्मा गांधी ने भारत पर शासन कर रहे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के जरिये अंतिम संदेश दिया कि वे अपने वतन लौट जायें. यह आंदोलन ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से खूब लोकप्रिय है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस आंदोलन ने देखते ही देखते इतना विकराल रूप धारण किया कि अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. आज हम जानेंगे कि गुलाम भारत को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंसा-अहिंसा दोनों शस्त्रों के साथ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की व्युह रचना क्यों बनानी पड़ी.
गांधीजी ने मंत्र फूंका ‘करो या मरो’!
14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्य समिति ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया. इसकी सार्वजनिक घोषणा से पहले 1 अगस्त 1942 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में तिलक दिवस मनाया गया. 8 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक हुई. यहां ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन को कुछ संशोधनों के साथ पास कर दिया. सबकी एक ही मांग थी ‘पूर्ण स्वराज’. गांधीजी ने अपने भाषण में आंदोलनकारियों में हुंकार भरते हुए ‘करो या मरो’ के मंत्र को दिल में बसाने की अपील की. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है, जब हम आजादी पाने तक लड़ेंगे, चाहे इस प्रयास में हमारी जान भी क्यों ना चली जाये.
अंग्रेजी हुकूमत का शातिर अंदाज
गांधीजी के इस महाआंदोलन का असर यह हुआ कि भारत के हर घरों में पूर्ण स्वराज के आंदोलन की मशालें जल उठीं. आंदोलन की घोषणा होते ही ब्रिटिश हुकूमत की पांव तले जमीन खिसक गयी. देखते ही देखते सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर कर लिया गया. गांधी जी को पूना (पुणे) के आगा खां पैलेस में नजरबंद किया गया तो कांग्रेस कार्यकारिणी के कई सदस्यों को अहमद नगर किले में कैद किया गया. पटना में राजेंद्र प्रसाद व अन्य नेता जेल में डाल दिये गये. अंग्रेजों ने यह गिरफ्तारी इतनी शातिर अंदाज में किया था कि आंदोलनकारियों को पता ही नहीं चला कि उनके नेता कहां कैद किये गये. इसके साथ ही ब्रिटिश हुकूमत ने कांग्रेस को गैरसंवैधानिक संस्था घोषित कर दिया.
अंग्रेजों की गोलियों से बेखौफ आंदोलनकारी सक्रिय रहे
बड़े पैमाने पर ऐसे भी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने गिरफ्तारी की आशंकाओं को देखते हुए भूमिगत हो गये. अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त को गुपचुप तरीके से ग्वालिया टैंक मैदान पर तिरंगा फहराकर ‘भारत छोड़ो’ का नारा लगाया. उधर इस महा आंदोलन में जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन और सुचेता कृपलानी जैसे कई बड़े नेता मुखर हुए, ये सभी भूमिगत रहकर आंदोलन का संचालन करते रहे. बंबई में ऊषा मेहता कांग्रेस रेडियो प्रसारण करके अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगल रही थीं. इसका असर यह हुआ कि लोगों ने अपने-अपने शहरों में स्थित सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा फहराना शुरु कर दिया. पटना के युवा छात्रों 11 अगस्त 1942 को सचिवालय पर तिरंगा फहराया तो ब्रिटिश अधिकारियों ने बर्बरता से गोली चला कर सात विद्यार्थी की हत्या कर दी. जनता ने बर्बरता का जवाब हिंसा से दिया. देश भर में रेल पटरियां उखाड़ दी गईं, स्टेशनों को फूंक दिया गया. मजदूरों ने हड़तालें कर दी. संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) में बलिया और बस्ती, बम्बई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर और बिहार में कई जगहों पर समानांतर सरकारे स्थापित की गयीं. भारतीय जनाक्रोश देखकर अंग्रेज समझ गये कि अब वे ज्यादा दिन यहां नहीं टिक सकेंगे.
पूर्व की गल्तियों को गांधी जी ने दुहराने से रोका
पूर्व में सम्राज्यवाद के खिलाफ आंदोलन तेज हो रहा था, तो पश्चिम में द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका बढ़ती जा रही थी. महात्मा गांधी अहिंसक एवं सत्याग्रह के जरिये आजादी लेना चाहते थे, तो नेताजी सुभाषचंद बोस आजादी दिलाने के लिए आजाद हिंद फौज की कमान संभाल कर अंग्रेजों की नकेल कसते रहे. भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि में दुनिया में बदलाव का दौर था. भारत छोड़ो आंदोलन के बाद जिस तरह पूरे देश में आगजनी और हिंसा हुई. इसकी शिकायत लेकर अंग्रेज अधिकारियों ने दुबारा गांधीजी पर दांव फेंकने की कोशिश की कि गांधी की अहिंसा की लड़ाई में हिंसा क्यों? उन्हें लगा कि गांधी जी हिंसा के नाम से असहयोग आंदोलन की तरह भारत छोड़ो आंदोलन से भी हाथ खींच लेंगे. लेकिन गांधीजी ने दो टूक कहा कि यह हिंसा अंग्रेजों ने भारतीयों को सिखाया है. अंग्रेज अधिकारी अपना सा मुंह लेकर लौट गये. इस तरह गांधी जी ने एक और गलती करने से खुद को बचाया.
क्रिप्स मिशन का फ्लॉप दांव
द्वितीय विश्व युद्ध की बढ़ती विभीषिका से ये आशंका भी बलवती हुई कहीं जापान भारत पर हमला ना कर दे. भारत में पहले से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई जारी थी. ऐसे में ब्रिटेन को भारत से समर्थन की उम्मीद नहीं थी. उधर मित्र देश अमेरिका, रूस और चीन ब्रिटेन पर दबाव डाल रहे थे, कि संकट की इस घड़ी में भारतीयों का समर्थन हासिल करें. भारत का समर्थन हासिल करने के लिए ब्रिटेन ने क्रिप्स को मार्च 1942 को भारत भेजा. क्रिप्स के योजनानुसार ब्रिटेन सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि डोमिनियन स्टेटस देना चाहता था. इसकी भी कोई समय सीमा नहीं तय थी. वो भारत की सुरक्षा अपने ही हाथों में रखना चाहती थी. कांग्रेस समेत तमाम भारतीय दलों ने क्रिप्स मिशन को खारिज कर दिया. उधर विश्व युद्ध के कारण परिस्थितियां गंभीर होती जा रही थीं. जापान सिंगापुर, मलाया एवं बर्मा पर कब्जा कर भारत की ओर बढ़ने लगा था. अंग्रेज सरकार के रवैये से नाराज भारतीयों ने माना कि ब्रिटिश हुकूमत पर अंतिम प्रहार करना आवश्यक हो गया है. जैसे-जैसे विश्व युद्ध आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे भारत की आर्थिक स्थिति भी खराब होती जा रही थी, जिसके लिए अंग्रेज सरकार को जिम्मेदार माना गया. सेना को टिकाने के लिए पूर्वी बंगाल में लोगों के जमीन छीन लिये गये. इन तमाम वजहों से भारतीय जनमानस के मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असंतोष चरम पर पहुंच गया. इन्हीं बिगड़ती परिस्थितियों में गांधी जी को करो या मरो के नारे के साथ अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन के लिए विवश किया.
अंततः ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीय नेताओं के साथ एक नेगोसियेशन की शुरुआत हुई, और इंडियन इंडिपेंडेंट एक्ट बना, जिसे ब्रिटिश पार्लियामेंट में पास किया गया. इस एक्ट के जरिये भारत को आजादी मिली.