
लखनऊ, 10 मार्च: जोरदार अभियान, भारी भीड़, आकर्षक नारे और करिश्माई नेतृत्व. इसके बावजूद कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन किया है. 2017 में जीती सात सीटों की तुलना में इस बार के शुरुआती रुझानों को देखें तो पार्टी के केवल दो सीटों पर जीतने की संभावना है. पार्टी को अपने एक समय के गढ़ रायबरेली और अमेठी में हार का सामना करना पड़ा है, जहां पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती है. जब प्रियंका ने टिकटों में महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, तो कई राजनीतिक पंडितों ने सोचा कि यह कांग्रेस के लिए गेम-चेंजर होगा. यह भी पढ़ें: Goa Assembly Election Results 2022: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गोवा के लोगों को धन्यवाद दिया
हालांकि, पार्टी ने 'अत्याचार' के शिकार लोगों को टिकट देकर इसे एक गैर-गंभीर मुद्दे में बदल दिया. इस कदम ने अस्थायी रूप से भले ही पार्टी के लिए प्रशंसा अर्जित की, लेकिन कोई भी 'पीड़ित' सार्वजनिक समर्थन और वोट हासिल नहीं कर सका. वोट की लड़ाई भावनाओं की लड़ाई से बिल्कुल अलग है और इस चुनाव ने इसे साबित कर दिया है.
प्रियंका, जब उन्होंने उम्मीदवारों के रूप में पीड़ितों को चुना, शायद वो नब्बे के दशक में फूलन देवी की सफलता की कहानी को दोहराने की कोशिश कर रही थीं. गैंगरेप की शिकार हुई फूलन पर भी बेहमई में 21 ठाकुरों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था. तत्कालीन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के लोकसभा चुनाव के लिए फूलन को मैदान में उतारने के फैसले ने प्रशंसा से ज्यादा विवाद पैदा किया लेकिन फूलन सांसद बनीं.
प्रियंका ने 2017 में उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता (रेप सर्वाइवर) की मां आशा सिंह को मैदान में उतारा, मगर यह 'विक्टिम कार्ड' उनके कोई काम नहीं आया. पूर्व भाजपा विधायक, कुलदीप सिंह सेंगर, जिन्हें 2019 में मामले में दोषी ठहराया गया था, का उन्नाव में काफी प्रभाव है और यहां तक कि सहानुभूति भी है, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि उन्हें गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था.
चार बार विधायक का पद संभालने वाले सेंगर के परिवार ने आशा सिंह को टिकट देने का कड़ा विरोध किया था, जो अब अपनी बेटी के साथ दिल्ली में रहती हैं. टिकट मिलने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "हमारे परिवार में कोई नहीं है. मैं अपने बहनोई औ�A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%AE+%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1%27%2C+%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95+%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF&via=LatestlyHindi ', 650, 420);" title="Share on Twitter">