Yogi Cabinet 2.0: इस वजह से ब्रजेश पाठक को मिली डिप्टी सीएम की कमान, पहले से तय था दिनेश शर्मा का जाना!

उत्तर प्रदेश के 18 वीं विधानसभा गठन के लिए हुए चुनाव में शानदार जीत के बाद सत्ताधारी बीजेपी (BJP) ने एक बार फिर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी है. इस बार भी दो डिप्टी सीएम बनाये गए है, लेकिन अबकी बार एक चेहरा बदला गया है. बीजेपी ने दिनेश शर्मा की जगह इस बार उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री रहे ब्रजेश पाठक को मौका दिया है.

दिनेश शर्मा और ब्रजेश पाठक (File Photo)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के 18 वीं विधानसभा गठन के लिए हुए चुनाव में शानदार जीत के बाद सत्ताधारी बीजेपी (BJP) ने एक बार फिर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी है. इस बार भी दो डिप्टी सीएम बनाये गए है, लेकिन अबकी बार एक चेहरा बदला गया है. बीजेपी ने दिनेश शर्मा (Dinesh Sharma) की जगह इस बार उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री रहे ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) को मौका दिया है. जबकि केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) को चुनाव हारने के बाद भी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी है. Yogi Adityanath Shapath Grahan: मुख्यमंत्री योगी ने दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, प्रधानमंत्री सहित तमाम लोग साक्षी बने

लखनऊ कैंट से चुनाव जीतने वाले ब्रजेश पाठक योगी सरकार के पहले कार्यकाल में भी कैबिनेट मंत्री थे. वें बीजेपी के बड़े ब्राह्मण नेताओं में गिने जाने है. पाठक पिछली बार लखनऊ मध्य से चुनाव जीते थे लेकिन बीजेपी ने इस बार उनकी सीट बदल दी थी. उधर, यूपी के पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था. अब तो यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है.

पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बीजेपी का फोकस मिशन 2024 पर है, इसको देखते हुए योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल 2.0 में जातीय व क्षेत्रीय समीकरण की तस्वीर देखने को मिल रही है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ब्राह्मणों के नाराज होने की खूब चर्चे थे. ऐसे में दिनेश शर्मा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर और ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी देकर बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए ब्राह्मणों को साधने की तैयारी कर सकती है.

उल्लेखनीय है कि उच्च जातियों के बीजेपी से नाराज होने की चुनाव पूर्व नैरेटिव के बावजूद, चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि ऊंची जातियों के सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी गठबंधन से हैं. गठबंधन के पास ऐसे 117 विधायक हैं जबकि सपा गठबंधन के पास केवल 11 विधायक हैं. सभी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विधायक केवल आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में जीते हैं, जिसमें बीजेपी गठबंधन की संख्या सबसे अधिक (65) है, उसके बाद सपा गठबंधन (20) और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) (1) है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जाति और धर्म प्रमुख कारक रहे हैं, लेकिन लगता है कि मोदी और योगी के करिश्मे ने सभी गुस्से को शांत कर दिया है, और पार्टी को अपार हिंदू समर्थन मिला है- जिसमें जाट भी शामिल हैं. माना जा रहा था कि इस बार जाट वोटर भाजपा के साथ नहीं है. बीजेपी ने मतदाताओं को सोशल इंजीनियरिंग और विकास के मुद्दे के साथ लामबंद किया, जिसका भरपूर लाभ मिला. आंकड़ों से पता चलता है कि सबसे अधिक विधायक ब्राह्मण समुदाय (52) से चुने गए हैं, इसके बाद राजपूत (49), कुर्मी/सैंथवार (40), मुस्लिम (34), जाटव/चमार (29), पासी (27), यादव (27), बनिया/खत्री (21) इत्यादि हैं. मुसलमानों, यादवों और राजभरों को छोड़कर, भाजपा गठबंधन के पास हर जाति में सबसे ज्यादा विधायक हैं.

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, पार्टी को 2017 में 83 फीसदी की तुलना में करीब 89 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले हैं. 2017 में 70 प्रतिशत की तुलना में लगभग 87 प्रतिशत ठाकुरों ने बीजेपी को वोट दिया है।. यह उल्लेखनीय है कि 2017 में, योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं किया गया था, जोकि खुद ठाकुर समुदाय से आते हैं. बीजेपी को हिंदू पिछड़ी जातियों का भी काफी समर्थन मिला है, जो इन जाति समूहों के विधायकों की बढ़ती संख्या से पता चलता है.

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