नई दिल्ली: मोदी सरकार के एजेंडा में शामिल समान नागरिक संहिता के विचार पर झटका देते हुए विधि आयोग ने कहा है कि फिलहाल देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है. साथ ही कहा कि समान नागरिक संहिता (UCC) एक बहुत विस्तृत विषय है. इसे पूरा तैयार करने में समय लगेगा.हालांकि आयोग ने विस्तृत परिचर्चा के बाद जारी कंसल्टेशन पेपर में विभिन्न धर्मों, मतों और आस्था के अनुयायियों के पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध करने और उन पर अमल की जरूरत बताई है.
बता दें कि अपने कार्यकाल के अंतिम दिन विधि आयोग ने पारिवारिक कानून को लेकर कंसल्टेशन पेपर जारी किया. इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सहित कई धर्मों के मुताबिक मान्य पर्सनल लॉ या धार्मिक नियमों के मुताबिक विवाह, संतान, दत्तक यानी गोद लेने, विवाह विच्छेद, विरासत और संपत्ति बंटवारा कानून जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी है. यह भी पढ़े-अमित शाह ने विधि आयोग को लिखा खत, कहा- बीजेपी एक साथ चुनाव के पक्ष में
समान नागरिक संहिता पर भारतीय विधि आयोग का कंसल्टेशन पेपर और सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में सुधार की बात आयोग ने कही है. यह भी पढ़े-महिलाओं को व्यभिचार का ज़िम्मेदार ठहराने वाली याचिका का केंद्र ने SC में विरोध किया
वही आयोग ने अपने पेपर में कहा है कि हम पर्सनल लॉ में इन बिंदुओं पर चर्चा चाहते हैं जिसमें सुधार की आवश्यकता है-
1- विवाह
2-तलाक
3-एडॉप्शन
4-इनहेरिटेंस
5-सक्सेशन
आयोग ने कहा कि ट्रिपल तलाक सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध बताया गया है. इसका विवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. एकतरफा तलाक को घरेलू हिंसा अधिनियम, महिलाओं पर क्रूरता, और आईपीसी की धारा 498 के तहत दंडित किया जाना चाहिए. हालांकि रिपोर्ट ट्रिपल तलाक से निपटने के लिए किसी भी विशेष कानून की बात नहीं करती है.