दिनाकरण का दावा- तमिलनाडु CM को पद से हटाने के लिए खुद उप-मुख्यमंत्री ने किया था संपर्क
टी टी वी दिनाकरण (Photo Credits: PTI)

चेन्नई: अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम (एएमएमके) नेता टी टी वी दिनाकरण ने शुक्रवार को दावा किया कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी को सत्ता से बेदखल करने के प्रयास के तहत उप मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम सितंबर में उनसे मिलना चाहते थे.

अन्नाद्रमुक से निष्कासित किये जा चुके नेता ने दावा किया कि पनीरसेल्वम ने पिछले साल जुलाई में उनसे मुलाकात की थी और इस साल सितंबर के अंत में फिर उनसे मिलना चाहते थे और इस उद्देश्य के लिये उन्होंने एक साझा मित्र के जरिये संदेश भिजवाया था.

दिनाकरण ने कहा कि हालांकि उन्होंने बैठक में हिस्सा लेने से मना कर दिया और दावा किया कि पनीरसेल्वम ने संदेश भिजवाया था कि वह पलानीस्वामी को ‘बेदखल’ करने और उन्हें ‘महत्वपूर्ण’ पद देने के लिये तैयार हैं.

एक टेलीविजन चर्चा के दौरान दिनाकरण के करीबी सहायक थंगा तमिलसेल्वन ने भी एक दिन पहले इसी तरह का बयान दिया था. दिनाकरण ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘वह (पनीरसेल्वम) मुख्यमंत्री को अपदस्थ करने के लिये मुझसे मिलना चाहते थे.’’

दिनाकरण ने कहा कि वह इस सूचना का खुलासा अब कर रहे हैं क्योंकि पनीरसेल्वम एक तरफ सार्वजनिक मंच पर उनकी आलोचना कर रहे हैं, दूसरी ओर संबंधों में सुधार के प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने दावा किया, ‘‘पनीरसेल्वम की दिलचस्पी सिर्फ मुख्यमंत्री बनने में है.’’

सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने दिनाकरण के दावों को खारिज करते हुए कहा कि वह ‘‘हालात का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.’’

पार्टी प्रवक्ता आर एम बाबू मुरुगावेल ने कहा कि दिनाकरण इस तरह का दावा शायद मद्रास उच्च न्यायालय के अन्नाद्रमुक के 18 विधायकों की अयोग्यता को बरकरार रखने की स्थिति में अपने लोगों को एकजुट रखने के लिये कर रहे हैं. ये विधायक दिनाकरण के साथ थे.

पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि कुछ अयोग्य ठहराए गए विधायक दिनाकरण से खुश नहीं हैं और पलानीस्वामी नीत खेमे में जाने के इच्छुक हैं. सत्तारूढ़ दल के मामला जीतने की स्थिति में इसकी काफी संभावना है.

विधानसभा अध्यक्ष पी धनपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास जताने वाले अन्नाद्रमुक के 18 विधायकों को पिछले साल अयोग्य ठहराया था.

इन विधायकों ने अपनी अयोग्यता को मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम सुंदर की पीठ ने खंडित फैसला सुनाया था. इसके बाद मामले को तीसरे न्यायाधीश के पास भेजा गया था. तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा है.