दक्षिण भारत में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर माहौल गर्म होता दिख रहा है. तमिलनाडु में केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति का खुलकर विरोध किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. ट्विटर पर #StopHindiImposition ट्रेंड कर रहा है. इसी कड़ी में डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने अपने ट्वीट में लिखा, "तमिलों के खून में हिंदी के लिए कोई जगह नहीं है, यदि हमारे राज्य के लोगों पर इसे थोपने की कोशिश की गई तो डीएमके इसे रोकने के लिए युद्ध करने को भी तैयार है. नए चुने गए एमपी लोकसभा में इस बारे में अपनी आवाज उठाएंगे."
पूरे मामले में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रतिक्रिया दी. जावडेकर ने कहा किसी भी भाषा को किसी पर थोपने का कोई इरादा नहीं है, हम सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहते हैं, यह समिति द्वारा तैयार किया गया एक प्लान है, जिसे सार्वजनिक प्रतिक्रिया मिलने के बाद सरकार द्वारा तय किया जाएगा.
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I&B Minister Prakash Javadekar on reported proposal of 3-language system in schools: There is no intention of imposing any language on anybody, we want to promote all Indian languages. It's a draft prepared by committee, which will be decided by govt after getting public feedback pic.twitter.com/t16JC3P8bf
— ANI (@ANI) June 1, 2019
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने स्कूलों में तीन भाषा प्रणाली के प्रस्ताव पर कहा "समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है, यह नीति नहीं है. सार्वजनिक प्रतिक्रिया मांगी जाएगी, यह गलतफहमी है कि यह एक नीति बन गई है. किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी.
HRD Minister Ramesh Pokhriyal on reported proposal of 3-language system in schools: Committee has submitted its report to Ministry, it's not the policy. Public feedback will be sought, it's a misunderstanding that it has become a policy. No language will be imposed on any state. pic.twitter.com/hFhJLvAFHF
— ANI (@ANI) June 1, 2019
दरअसल, नई शिक्षा नीति में तीन भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है, जिसमें हिंदी भी शामिल है. इसी बात को लेकर दक्षिण में विरोध शुरू हो गया है. नेताओं और सिविल सोसायटी ने कहा कि इसे थोपा जा रहा है. डीएमके नेता तिरूचि सिवा ने केंद्र सरकार को विरोध प्रदर्शन की चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है.
सिवा ने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी का प्रदर्शन सल्फर गोदाम में आग फेंकने जैसा है. यदि वे फिर से हिंदी सीखने पर जोर देते हैं, तो यहां के छात्र और युवा इसे किसी भी कीमत पर रोक देंगे. तिरूचि सिवा ने इस दौरान हिंदी विरोधी आंदोलन 1965 का भी जिक्र किया.
बता दे तमिलनाडु में इससे पहले 1930 और 1960 के दशक में हिंदी विरोधी उग्र आंदोलन हो चुके हैं. 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी में सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व में बनी इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया था, जिसका काफी विरोध हुआ था. साल 1965 में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की पहल के खिलाफ तमिलनाडु में छात्रों की अगुवाई में काफी हिंसक प्रदर्शन हुए थे. जिसमें डीएमके ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कई हिंसक झड़पें हुईं औ तकरीबन दो हफ्ते तक चले इस हिंसक प्रदर्शन में और आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 70 लोगों की जानें गईं.
क्या है केंद्र की तीन भाषा प्रणाली
केंद्र सरकार के नए प्रस्ताव के मुताबिक कम से कम 5वीं कक्षा अथवा 8वीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाने का सुझाव दिया गया है. साथ ही विशेषज्ञों के पैनल ने पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणालियों को शामिल करने, मातृभाषा के साथ-साथ 3 भारतीय भाषाओं का ज्ञान देने, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन करने और निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाने सहित कई महत्वपूर्ण सिफारिशों को शामिल किया है.