अयोध्या विवाद: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट तय करेगा, समझौता या फैसला

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में दूसरे दौर की मध्यस्थता से 70 साल पुराने विवाद का समाधान पेचीदा बन गया है. मामले में मुख्य पक्षकारों ने समाधान के बजाय फैसले पर जोर दिया है. सभी पक्षों में सहमति नहीं होने पर मध्यस्थता समिति सर्वसम्मति से समाधान नहीं कर सकता है.

बाबरी मस्जिद (Photo Credits : IANS)

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (Ram Janmabhoomi-Babri Masjid) मामले में दूसरे दौर की मध्यस्थता से 70 साल पुराने विवाद का समाधान पेचीदा बन गया है. मामले में मुख्य पक्षकारों ने समाधान के बजाय फैसले पर जोर दिया है. सभी पक्षों में सहमति नहीं होने पर मध्यस्थता समिति सर्वसम्मति से समाधान नहीं कर सकता है. दूसरे दौर की मध्यस्थता के समय को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है क्योंकि शीर्ष अदालत द्वारा 18 अक्टूबर को सुनवाई पूरी करने की समय-सीमा तय करने के बाद इसका प्रस्ताव किया गया.

मध्यस्थता करने के इस प्रस्ताव से सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) के दो गुटों में दरार पैदा हो गई है क्योंकि इसके वकील ने अदालत में मामले में सुनवाई पूरी करना पसंद किया और बोर्ड में समाधान चाहने वाले पक्षकारों का विरोध किया. इस परिस्थिति में हिंदू पक्षकार विवादित स्थल को भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में स्थापित करने के लिए पहले ही काफी तर्क दे चुके हैं.

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इसलिए माना जा रहा है कि हिंदू पक्षकार रणनीति के तहत अयोध्या विवाद (Ayodhya Dispute) में दूसरे दौर की मध्यस्थता से अलग हो गए हैं क्योंकि उनका मानना है कि बातचीत में शामिल पक्ष एक मंच पर नहीं आ सकते हैं. हिंदू पक्ष के एक सूत्र ने कहा, "हम देख सकते हैं कि वक्फ बोर्ड की राय में मतभेद है और मध्यस्थता का समर्थन करने वाले गुट को मामले में कई वर्षो से शामिल प्रमुख मुस्लिम पक्षकारों का समर्थन नहीं है. हमारा मानना है कि मध्यस्थता से समाधान के बजाय ज्यादा गड़बड़ी ही पैदा होगी."

रामलला के वकीलों ने शीर्ष अदालत को साफतौर पर बता दिया कि उनको मध्यस्थता में हिस्सा लेने में दिलचस्पी नहीं है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश में रामलला, निर्मोही अखाड़ा और वक्फ बोर्ड के बीच 2.77 एकड़ विवादित भूमि को बराबर हिस्से में बांटने का फैसला हुआ था. रामलला और निर्मोही अखाड़ा में हमेशा टकराव बना रहा क्योंकि कोई विवादित स्थल को लेकर अपने दावे पर समझौता नहीं करना चाहते थे.

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