सीसामऊ उपचुनाव 2024: नसीम सोलंकी के मंदिर में पूजा करने पर मचा बवाल, गंगाजल से हुआ शुद्धिकरण

उत्तर प्रदेश की सीसामऊ सीट पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने वनखंडेश्वर मंदिर में पूजा की. जैसे ही यह खबर फैली, हिंदू संगठनों और मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं.

उत्तर प्रदेश की सीसामऊ सीट पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने हाल ही में वनखंडेश्वर मंदिर में पूजा की. यह घटना न केवल राजनीतिक जगत में बल्कि धार्मिक समुदायों के बीच भी हंगामा खड़ा कर गई. जैसे ही यह खबर फैली, हिंदू संगठनों और मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं.

पूजा का विवाद 

नसीम सोलंकी का यह कदम हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए जहां एक धार्मिक आस्था का प्रतीक था, वहीं मुस्लिम धर्मगुरु मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इसे इस्लाम के खिलाफ बताया. उन्होंने नसीम के खिलाफ फतवा जारी करते हुए कहा कि किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल पर जाकर पूजा करना अनुचित है.

ट्रस्ट का निर्णय 

मंदिर ट्रस्ट ने इस मामले में त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए गंगाजल से मंदिर का शुद्धिकरण करने का निर्णय लिया. हरिद्वार से लाए गए गंगाजल का छिड़काव मंदिर के हर कोने में किया गया. ट्रस्ट के सदस्यों ने कहा कि यह पूजा धार्मिक मर्यादाओं का उल्लंघन है और इसे राजनीतिक उद्देश्य से किया गया था. मंदिर के पुजारी ने भी इस पर नाराजगी जताते हुए कहा, "अगर किसी अन्य धर्म के अनुयायियों को पूजा करनी थी, तो उन्हें पहले अनुमति लेनी चाहिए थी."

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं 

इस घटना के बाद भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी ने नसीम सोलंकी की पूजा को चुनावी ढोंग बताते हुए सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "समाजवादी पार्टी के इस प्रयास से हिंदू वोटरों को भ्रमित नहीं किया जा सकता. सीसामऊ में जीत भाजपा की होगी." उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि चुनावी राजनीति में धर्म और राजनीति के बीच की रेखा कितनी पतली होती जा रही है.

जनता की प्रतिक्रिया 

सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों पर इस विवाद को लेकर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं. कुछ लोगों ने नसीम सोलंकी के कदम का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया. इस घटना ने न केवल सीसामऊ में बल्कि पूरे प्रदेश में धार्मिक सद्भाव और राजनीतिक उद्देश्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. अब देखना यह होगा कि इस विवाद का राजनीतिक परिणाम क्या होता है और जनता इस पर कैसे प्रतिक्रिया देती है. क्या यह चुनावी रणनीति उन्हें लाभ दिला पाएगी या यह केवल एक राजनीतिक हंगामे के रूप में ही रह जाएगी?

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