
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को तेजी से अपडेट करने की एक योजना पर काम कर रहा है. इस योजना को 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) कहा जा रहा है. लेकिन AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर गंभीर चिंता जताई है. उनका कहना है कि इस जल्दबाजी में बिहार के करोड़ों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से कट सकता है और वे वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.
ओवैसी ने क्या सवाल उठाए?
एक इंटरव्यू में ओवैसी ने चुनाव आयोग की योजना पर सवाल उठाते हुए कहा, "आप यह पूरा काम सिर्फ एक महीने में करना चाहते हैं. यह कैसे संभव है? इसके पीछे क्या तर्क है?"
उन्होंने साफ तौर पर चेतावनी दी कि इस जल्दबाजी का नतीजा यह होगा कि लाखों, और शायद करोड़ों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब हो जाएंगे. ओवैसी ने कहा, "अगर चुनाव हो गए और लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हुए, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इतने कम समय में यह काम करना असंभव है."
ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के 'लाल बाबू हुसैन' मामले का भी जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने फैसला दिया था कि किसी भी व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट से बिना उचित नोटिस और प्रक्रिया के नहीं हटाया जा सकता.
व्यावहारिक समस्याएं क्या हैं?
ओवैसी ने बिहार की जमीनी हकीकत की ओर भी ध्यान दिलाया.
पलायन: उन्होंने कहा, "बिहार के ज्यादातर युवा रोजी-रोटी के लिए पंजाब, केरल, मुंबई, हैदराबाद और दिल्ली जैसे शहरों में रहते हैं."
बाढ़: सीमांचल जैसे इलाके लगभग छह महीने बाढ़ की चपेट में रहते हैं, जिससे वहां पहुंचना मुश्किल होता है.
इन हालात में, बूथ लेवल के अधिकारी (BLA) घर-घर जाकर सिर्फ एक महीने में 8 करोड़ वोटरों का रिकॉर्ड कैसे जांच सकते हैं? यह लगभग नामुमकिन है.
विपक्ष भी चिंतित है
सिर्फ ओवैसी ही नहीं, बल्कि 'INDIA' गठबंधन के कई अन्य दल भी इस योजना का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस, RJD, CPI(M) और समाजवादी पार्टी समेत 11 दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग से मिलकर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं.
कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने आशंका जताई कि इस प्रक्रिया में कम से कम दो करोड़ लोग वोट देने से वंचित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार के लगभग आठ करोड़ वोटरों में से कई गरीब, दलित, आदिवासी और प्रवासी मजदूर हैं. इतने कम समय में उनके लिए खुद के या अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज पेश करना बहुत मुश्किल होगा.
संक्षेप में, विपक्ष का मानना है कि चुनाव से ठीक पहले वोटर लिस्ट को अपडेट करने की यह जल्दबाजी सही नहीं है. इससे बिहार के आम नागरिकों को, खासकर गरीबों और प्रवासियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा और वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने से चूक सकते हैं.