मध्य प्रदेश: कांग्रेस किसी पिछड़े या आदिवासी नेता को दे सकती है सूबे की कमान
राज्य में लगभग छह माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में 230 सीटों में से 114 पर कांग्रेस, 109 पर भाजपा, दो पर बसपा और एक पर सपा ने जीत दर्ज की थी. वहीं चार स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे. वर्तमान में कांग्रेस की सरकार सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है.
पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद मध्य प्रदेश में भी नए अध्यक्ष की सुगबुगाहट है. पार्टी यहां सर्वमान्य नेता की तलाश में है, जो सभी गुटों के बीच समन्वय स्थापित कर सके. पार्टी युवा वर्ग से जुड़े आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के नेताओं में संभावनाएं तलाश रही है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि नजदीकी राज्य छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता मोहन मरकाम को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है, और अब पार्टी मध्य प्रदेश में भी किसी आदिवासी या पिछड़ा वर्ग के नेता को तलाश रही है. दरअसल, राज्य के इन दो वर्गो ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया था. लेकिन लोकसभा चुनाव में जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली, उनमें अधिकांश आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा सीटें हैं.
राज्य विधानसभा चुनाव में सफलता के बाद प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली और उसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी, मगर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें लोकसभा चुनाव तक इस जिम्मेदारी पर बने रहने को कहा था. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मध्य प्रदेश में 29 में से सिर्फ एक सीट मिली. देश में भी इसी तरह के नतीजे कांग्रेस के हिस्से आए.
राज्य सरकार में मंत्री कमलेश्वर पटेल कांग्रेस की हार के लिए सभी मंत्रियों और नेताओं को जिम्मेदार मान रहे हैं. वहीं एक अन्य मंत्री उमंग सिघार राज्य में ऐसा अध्यक्ष चाहते हैं, जो सभी को साथ लेकर चले.
बहरहाल, प्रदेश कांग्रेस में नए अध्यक्ष के संभावित चेहरों में आदिवासी नेताओं में बाला बच्चन और उमंग सिघार के नाम की चर्चा है, तो दूसरी ओर पिछड़ा वर्ग से कमलेश्वर पटेल और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को दौड़ में माना जा रहा है. ये चारों ऐसे नेता हैं, जिनका पार्टी के अन्य नेताओं से सीधे तौर पर कोई मतभेद नहीं है और दूसरी पंक्ति के नेता हैं. लिहाजा इन्हें पार्टी के दिग्गज नेताओं मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिह और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिया से समन्वय बनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी, पार्टी का ऐसा मानना है.
राजनीतिक विश्लेषक सॉजी थामस का कहना है कि "लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कार्यकर्ताओं में निराशा है, यही कारण है कि पार्टी एक ऊर्जावान युवा नेता को अध्यक्ष पद की कमान सौंपने पर विचार कर रही है. इसमें राज्य के जातीय गणित पर भी ध्यान दिया जा रहा है. लिहाजा पार्टी आदिवासी अथवा पिछड़ा वर्ग के किसी नेता को अध्यक्ष बनाने पर विचार कर सकती है."
राज्य में लगभग छह माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में 230 सीटों में से 114 पर कांग्रेस, 109 पर भाजपा, दो पर बसपा और एक पर सपा ने जीत दर्ज की थी. वहीं चार स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे. वर्तमान में कांग्रेस की सरकार सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है.