मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhyapradesh Assembly Election 2018) में उम्मीदवारों का भविष्य अब कुछ देर में सभी के सामने होगा. अगले पांच साल तक राज्य में किसका राज रहेगा इसका फैसला जनादेश के अनुसार होगा. अब सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखाकर कांग्रेस सत्ता में आएगी. बता दें कि शिवराज सिंह चौहान यहां 2005 से मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं. मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत हैं. टाइम्स नाउ-सीएनएक्स के मुताबिक बीजेपी को 126, कांग्रेस को 89 व अन्य को 15 सीटें मिल रही हैं. इंडिया टुडे-एक्सिस के अनुसार बीजेपी को 102-120, कांग्रेस को 104-122 सीटें मिलने का अनुमान है.
शिवराज सिंह चौहान:
राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी के तरफ से इस बार भी शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) मैदान में हैं. लगातार 13 साल से मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज भली-भांति जानते हैं कि राज्य की जनता कब क्या चाहती है. यही कारण है कि बीजेपी की तरफ से सीएम की रेस में इस बार भी वही सबसे आगे हैं. साल 2005 में जब बीजेपी बदलाव के दौर से गुजर रही थी तब शिवराज ने ही राज्य में सरकार संभाली थी, और तब से लेकर आज तक वे इस पद पर कायम हैं.
शिवराज का सियासी सफर उनकी सीएम की कुर्सी से शुरू नहीं होता, बल्कि इस मुकाम तक पहुंचने से पहले वो सत्ता की हर छोटी मोटी संकरी और पथरीली गलियों से गुजरकर चुके हैं, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के हाथों मिली करारी हार भी शामिल है. इसके बाद से शिवराज सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति का वह सितारा बनकर उभरें हैं जिसकी चमक से बीजेपी में मजबूती बनी हुई है. अब देखना यह होगा कि शिवराज सिंह की यह चमक अभी भी बरकरार है या वक्त के साथ वह धुंधली हुई है. यह भी पढ़ें- राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 नतीजे: इन 3 कद्दावर नेताओं में से 1 का सीएम बनना तय
शिवराज सिंह की लोकप्रियता के ग्राफ को देखें तो यह भी साल दर साल बढ़ता ही नजर आता है. इन 13 सालों में शिवराज और उनके परिवार पर बहुत लांछन भी लगे, आज भी लग रहे हैं लेकिन उनकी छवि अभी भी एक साफ-सुधरे नेता के तौर पर ही देखी जाती है. मध्य प्रदेश चुनाव में जिस तरह बीजेपी ने उन्हें आगे किया है, उससे यह साफ है कि अगर जीते तो वह बीजेपी में सिकंदर बन जाएंगे. शिवराज अगर 2018 के चुनाव में भी जीत हासिल करते हैं तो वे फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद वह बीजेपी के तीसरे सबसे मजबूत नेता होंगे.
कमलनाथ:
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ (Kamal Nath) भी सीएम की रेस में आगे दौड़ रहें हैं. कमलनाथ 40 साल से ज्यादा वक्त से राजनीति में सक्रिय हैं. छिंदवाड़ा से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की ताजपोशी से कांग्रेस एमपी में सत्ता हासिल करने का ख्वाब देख रही है, अब ये ख्वाब उसका पूरा होता है या नहीं, ये तो आने वाला वक्त बताएगा. मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने कांग्रेस के प्रचार के लिए अपने दिन-रात एक किए हैं. यूं कहें कि वे बीजेपी को इस बार कांटे की टक्कर दे रहें हैं. हालांकि इस बीच उनके कुछ वीडियो में काफी वायरल हुए लेकिन इनका चुनाव पर कुछ असर पड़ता है या नहीं ये 11 दिसंबर को ही पता चलेगा.
इस चुनाव को लेकर कमलनाथ को कितना भरोसा है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने एमपी में कांग्रेस के 140 सीटें जीतने का दावा किया है. वहीं कांग्रेस का भी कहना है कि अगर हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व के द्वारा प्रदेश में कमलनाथ जी को मौका दिया जाता है, तो यही अच्छा रहेगा. कमलनाथ जी यूपीए सरकार में कैबिनेट स्तर के मंत्री कर चुके हैं. अनुभव के साथ ही उन्हें पूरे मध्य प्रदेश की भी जानकारी है.'
नौ बार सांसद रह चुके कमलनाथ एक उत्कृष्ट और कुशल नेता के रूप में राज्य में कांग्रेस की कमान संभाल रहें हैं. 1980 में छिंदवाड़ा की जनता ने कमलनाथ को 7वीं लोकसभा में भेजा. मूल रूप से छिंदवाड़ा एक आदिवासी इलाका माना जाता है. कमलनाथ ने यहां लोगों को रोजगार दिया और आदिवासियों के उत्थान के लिए कई काम किए. कांग्रेस के कार्यकाल में कलनाथ उद्योग मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय, वन और पर्यावरण मंत्रालय, सड़क और परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया:
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की इस रेस में एक और शख्स तेजी से आगे बढ़ रहा है. इस शख्स ने सूबे के मुख्यमंत्री को तो कड़ी टक्कर दी है साथ ही अपनी पार्टी के भीतर भी अपने कद को खूब बढ़ाया है. यह शख्स कोई और नहीं बल्कि गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraaditya Sindhiya) हैं. माधवराव सिंधिया के पुत्र मध्यप्रदेश की सियासत में तेजी से उभरे हैं. कांग्रेस पार्टी को सिंधिया में नई उम्मीद की किरण नजर आ रही हैं. हालांकि पार्टी ने सूबे का कप्तान कमलनाथ को बनाया था मगर सिंधिया पर प्रचार की कमान सौंपी गई थी.
सिंधिया ने काफी आक्रामकता से सूबे में कांग्रेस पार्टी का प्रचारकिया. सूबे में 15 साल से बीजेपी की सरकार हैं और इसे सत्ता से बेदखल करने के लिए सिंधिया ने एड़ी चोटी का दम लगाया. आइये जानते हैं उनका सियासी सफर. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया के पुत्र हैं. साल 2001 में माधवराव सिंधिया की विमान हादसे में हुई मौत के बाद ज्योतिरादित्य सियासत में आए. वे साल 2002 में गुना लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए. इसके बाद लगातार 4 बार से ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से सांसद हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबियों में से एक हैं. उन्हें यूपीए-2 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऊर्जा राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया था. राजघराने से ताल्लुक रखने के बाद भी सिंधिया ने अपनी छवि एक सौम्य नेता के रूप में गढ़ी है. वे महाराजा कहलाना भी नहीं पसंद करते. ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश की जनता के बीच काफी लोकप्रिय हैं. उनकी सभाओं में भरी संख्या में लोग जुटते हैं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि सिंधिया महज 13 वर्ष की आयु से ही चुनाव प्रचार करते रहे हैं और उन्होंने अपने पिता के लिए भी प्रचार किया है.