Bihar Regiment: भारतीय सेना के लिए अहम है बिहार रेजिमेंट, जानें इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह कहा था लद्दाख में हमारे बहादुरों द्वारा दिए गए बलिदान पर देश को गर्व है. आज जब मैं बिहार के लोगों से बात कर रहा हूं, तो मैं कहूंगा कि वीरता बिहार रेजिमेंट की थी, हर बिहारी को गर्व है." इसके बाद कई खबरें आयीं, जिनमें विस्तार से बताया गया कि कैसे "बिहारियों" ने एक चीनी अवलोकन पोस्ट को हटा दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने पिछले सप्ताह कहा था, "लद्दाख में हमारे बहादुरों द्वारा दिए गए बलिदान पर देश को गर्व है. आज जब मैं बिहार के लोगों से बात कर रहा हूं, तो मैं कहूंगा कि वीरता बिहार रेजिमेंट की थी, हर बिहारी को गर्व है." इसके बाद कई खबरें आयीं, जिनमें विस्तार से बताया गया कि कैसे "बिहारियों" ने एक चीनी अवलोकन पोस्ट को हटा दिया.
इंडियन आर्मी की नॉर्दन कमांड की के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट ने भी एक वीडियो जारी किया, जिसमें बिहार रेजीमेंट की शौर्य गाथा दिखाई गई. इस ट्वीट के साथ सेना ने लिखा है, "#भारतीयसेना #कारगिल के 21 साल...ध्रुव योद्धाओं की गाथा और बिहार रेजीमेंट के शेर लड़ने के लिए जन्में हैं. वे बैट नहीं बैटमैन हैं. हर सोमवार के बाद मंगलवार आता है. बजरंग बली की जय" 1 मिनट 57 सेकंड के इस वीडियो में 1857 से 1999 तक रेजिमेंट द्वारा उठाए गए कुछ सबसे अधिक हर्कुलियन मिशन के बारे में बताया गया है.
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बिहार रेजिमेंट की वीरगाथा लिखने बैठें, तो शायद पन्ने कम पड़ जाए. एक नज़र डालते हैं उन प्रमुख घटनाओं पर, जो शौर्य और पराक्रम का परिचय देती हैं. जब बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन ने पाकिस्तानी सेना से कारगिल में एक रणनीतिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. वीडियो में मेजर अखिल प्रताप कहते हैं, “यह वही महीना था, 21 साल पहले. बिहार रेजिमेंट ने कारगिल घुसपैठियों को मार गिराया था. वे ऊंचाइयों पर पूरी तरह तैयार थे या नहीं, यह नहीं पता लेकिन वे हिम्मत के साथ गए और गौरव के साथ वापस आए."
कुछ सैन्य अधिकारी बताते हैं कि किसी भी क्षेत्र के नाम से जुड़ी रेजिमेंट का मतलब यह नहीं होता है कि उसमें केवल उस क्षेत्र के सैनिक ही भर्ती होंगे. चीनी के साथ संघर्ष में 20 सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की, जिनमें से 13 बिहार रेजिमेंट के थे. जबकि उन 13 में केवल लोग ही पांच बिहार के थे. कुल मिलाकर, 20 अलग-अलग इकाइयों से संबंधित 11 राज्यों से थे. रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल संतोष बाबू, जो मारे गए, हैदराबाद से थे.
कैसे रखे जाते हैं रेजिमेंट के नाम
भारतीय सेना के स्वतंत्रता-पूर्व काल पर नज़र डालें तो ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की रेजिमेंटों में कई रेजिमेंट समुदाय या क्षेत्रों के नाम पर थे. उस दौरान जहां से सैनिकों की भर्ती की जाती थी, उसी क्षेत्र या समुदाय के नाम पर रेजिमेंट का नाम पड़ता था. उदाहरण के लिए, सिख रेजिमेंट को जाट सिख समुदाय से भर्ती किया गया, जबकि पंजाब रेजिमेंट को सिखों, हिंदुओं, मुसलमानों और डोगरों के बीच से भर्ती किया गया. बिहार रेजिमेंट, जिसे 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया था.
1947 के बाद हुआ परिवर्तन
जाति, क्षेत्र या धर्म-आधारित रेजिमेंट की ब्रिटिश नीति में स्वतंत्रता के बाद परिवर्तन किया गया. 1947 से भारतीय सेना में कोई समुदाय-आधारित रेजिमेंट नहीं बनाई गई. हालांकि, कुछ रेजिमेंटों में, जैसे कि सिख रेजिमेंट, केवल जाट सिख समुदाय से भर्ती की प्रथा आज भी निचले स्तर तक जारी है. इनके अधिकारी विभिन्न समुदायों या क्षेत्रों से हो सकते हैं. जैसे वर्तमान सेना प्रमुख, जनरल एम. एम. नरवाने एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण होने के बावजूद सिख लाइट इन्फैंट्री से हैं. भारतीय सेना में वर्तमान में 25 सामुदायिक-आधारित रेजिमेंट हैं, जबकि कुछ निश्चित "मिश्रित वर्ग" रेजिमेंट भी हैं.
बिहार रेजिमेंट के कारनामे
वर्ष 1947, 1965, 1971 का भारत-पाक युद्ध हो या कारगिल युद्ध, हर मोर्चे पर बिहार के जवानों ने दुश्मनों को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. करगिल में भी इनके पराक्रम को दुनिया ने देखा. इस लड़ाई में बिहार रेजिमेंट के करीब 10 हजार सैनिक शामिल हुए थे. इस रेजिमेंट के जवानों ने कई चोटियों पर विजय पताका लहराया. 1971 की लड़ाई में जब पाक के दो टुकड़े हुए, उस लड़ाई में भी बिहार रेजिमेंट की अहम भूमिका रही थी. आज फिर लद्दाख में बिहार के सूपत चीनी सैनिकों के साथ 3-3 हाथ करने के लिए अग्रिम मोर्चे पर डटे हैं.
1941 में हुआ था बिहार रेजिमेंट का गठन
बिहार रेजिमेंटल सेंटर को 1 नवंबर 1945 को आगरा में लेफ्टिनेंट कर्नल आर सी मुलर द्वारा गठित किया गया था. अप्रैल 1946 में, केंद्र के आदेश के तहत आगरा से रांची आ गया. बाद में नवंबर 1946 में, रेजिमेंट का केंद्र गया में स्थापित किया गया. प्रथम भारतीय कमांडेंट, लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर बने) हरदयाल सिंह रंधावा ने नवंबर 1947 में केंद्र की कमान संभाली. फिर मार्च 1949 में, रेजिमेंट का केंद्र अंततः गया से दानापुर स्थानांतरित कर दिया गया.
वर्तमान में बिहार रेजिमेंट में 20 नियमित बटालियन, चार संबद्ध राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन और दो प्रादेशिक सेना बटालियन हैं. बिहार रेजिमेंट के जवानों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भी परचम लहराया था. यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंटों में से एक है. बिहार रेजिमेंट को उसकी बहादुरी के लिए तीन अशोक चक्र, सात परम विशिष्ट सेवा मेडल, दो महावीर चक्र, 14 कीर्ति चक्र, आठ अति विशिष्ट सेवा मेडल, 15 वीर चक्र, 41 शौर्य चक्र, पांच युद्ध सेवा मेडल, 153 सेना मेडल, तीन जीवन रक्षा पदक, 31 विशिष्ट सेवा मेडल और 68 मेंशन इन डिसपैच मेडल मिल चुके हैं.