ट्रैफिक सिग्नल की सारी बत्तियां एक साथ जल जाएं तो क्या होगा? जर्मनी में ट्रैफिक सिग्नल गठबंधन कही जाने वाली सत्ताधारी सरकार की स्थिति ऐसी ही है.जर्मनी में चासंलर ओलाफ शॉल्त्स की करीब तीन साल पुरानी सरकार को ट्रैफिक सिग्नल गठबंधन भी कहा जाता है. लाल रंग शॉल्त्स की हल्की वामपंथी झुकाव वाली पार्टी एसपीडी का है. पीला रंग उदार कारोबारी नीतियों की वकालत करने वाली पार्टी एफडीपी है. पर्यावरण के मुद्दों को प्राथमिकता देने वाली ग्रीन पार्टी की पहचान हरा रंग है. लेकिन इस वक्त ट्रैफिक सिग्नल की ये तीनों लाइटें पूरा जोर लगााकर एक साथ जल रही हैं. और इसकी वजह है, 11 महीने दूर खड़े चुनाव.
सर्वेक्षणों के मुताबिक, जर्मन मतदाताओं के बीच मौजूदा सरकार की लोकप्रियता धरातल पर है. इस तरह की रिपोर्टों के बीच आशंकाएं जताई जा रही हैं कि चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार समय से पहले ही गिर जाए. गठबंधन में शामिल एफडीपी के नेता मूल्यांकन कर रहे हैं कि क्या अभी सरकार से बाहर निकल जाना, अगले चुनाव में फायदा पहुंचाएगा.
गठबंधन सरकार में भारी मतभेद
कोरोना महामारी और फिर यूक्रेन युद्ध ने जर्मन अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी. महंगी ऊर्जा और मांग में कमी के बीच जर्मन उद्योगों का उत्पादन गिरने लगा. साथ ही, कुशल कामगारों की कमी, पुराने पड़ते आधारभूत ढांचे और जटिल लालफीताशाही ने हालात और गंभीर कर दिए.
इन समस्याओं का समाधान कैसे हो, इस पर ट्रैफिक सिग्नल सरकार में एकराय अकसर नहीं बन सकी.
एफडीपी के नेता और जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने पिछले हफ्ते कहा, "आइडियाज की कोई कमी नहीं है. कमी है तो सत्ताधारी गठबंधन में सहमति की."
सहमति न बना पाने में लिंडनर की भी भूमिका है. ऐसे कई मौके रहे हैं जब उन्होंने सरकार की नीतियों को लेकर सार्वजनिक तौर पर असहमति जताई.
पिछले ही हफ्ते ग्रीन पार्टी के नेता और जर्मनी के उप चासंलर व आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हर तरह की कंपनी को सरकारी इनवेस्टमेंट फंड से मदद देने का प्रस्ताव रखा. लिंडनर और चासंलर शॉल्त्स ने इसे खारिज कर दिया. उसके बाद मंगलवार को चांसलर शॉल्त्स ने उद्योगों और ट्रेड यूनियनों के साथ एक मीटिंग रखी. और उसी दिन लिंडनर की पार्टी ने भी कारोबारियों के साथ एक मुलाकात आयोजित कराई.
तकरार से भरे तीन साल
ग्रीन पार्टी और एफडीपी ने 2021 के आम चुनावों के बाद शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया. तब दोनों पार्टियों ने कहा कि वे अतीत के मतभेद भुलाकर साथ आ रही हैं ताकि जर्मनी का आधुनिकीकरण किया जा सके. यूक्रेन युद्ध के बाद पैदा हुए ऊर्जा संकट से निपटने में इस गठबंधन सरकार ने बढ़िया काम किया. सैन्य आधुनिकीकरण और कई सामाजिक सुधार भी लागू किए गए. लेकिन इन सबके बावजूद ज्यादातर जर्मनों को लगता है कि ये सरकार काम नहीं कर पा रही है.
असल में आर्थिक और वित्तीय मामलों को लेकर सरकार के भीतर मतभेद बहुत बड़े हैं. वामपंथी झुकाव वाले नेता सरकारी मदद देना चाहते हैं और सामाज कल्याण के पैसे में कोई कटौती नहीं देखना चाहते हैं. वहीं लिंडनर की पार्टी किसी भी तरह के टैक्स इजाफे और नए किस्म के सरकारी कर्ज के खिलाफ है.
जर्मनी के सार्वजनिक टेलीविजन चैनल, जेडडीएफ से बात करते हुए इकोनॉमिक थिंक टैंक, आएफओ के प्रमुख क्लेमेंस फॉएस्ट ने कहा, "हर पार्टी अपने तरीके से काम कर रही है- ऐसे में आपको लगता है जैसे वे अभी ही चुनाव अभियान में हैं."
कई महीनों बाद जर्मन अर्थव्यवस्था में जरा सी तेजी
जर्मनी, दुनिया की चौथी और यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन देश 2023 से आर्थिक मंदी झेल रहा है. हालांकि इस साल की तीसरी तिमाही में जर्मन जीडीपी चौंकाने वाले अंदाज में 0.2 फीसदी की दर से बढ़ी है. 2024 की दूसरी तिमाही के मुकाबले थर्ड क्वार्टर में जीडीपी जरा सा ऊपर आई है.
30 अक्टूबर को ये आंकड़े जर्मनी के संघीय सांख्यिकी विभाग ने जारी किए. इन आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर अब भी छह फीसदी बनी हुई है. 8.44 करोड़ की जनसंख्या वाले जर्मनी में फिलहाल बेरोजगारों की संख्या 1,83,000 है.
ओएसजे/एवाई (एपी, डीपीए)