बिहार में इस साल के अंत यानी अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव संभावित है. लेकिन समय से पहले से ही बिहार में सियासी पारा चढ़ गया है. राजनीतिक दल जहां अपने महागठबंधन में अपनी ताकत और अपनी पकड़ बनाने के लिए जोर लगाने में जुट गए हैं. अब आलम ये है कि राजनीतिक दल के नेता अपनी बढ़त बनाने के लिए सियासी यात्रा पर निकल गए हैं, तो कई राजनीतिक दल अपना कुनबा बढ़ाने को लेकर कई तरह के अभियान चला रहे हैं. दरअसल बिहार में विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन एनआरसी (NRC) लागू नहीं करने तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) में एक संशोधन के साथ 2010 के प्रारूप में इसे लागू करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया. वैसे माना जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार सीएए-एनपीआर पर कदम उठाकर अपनी सेकुलर छवि को कायम रखना चाहते हैं.
नीतीश के इस कदम से जहां एक तरफ बीजेपी में जहां मायूस थी. वहीं चिंता और भी बढ़ गई जब पास होने से पहले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने मुलकात भी की थी. दोनों नेताओं के बीच 25 फरवरी को मुलाकात हुई थी. जिसके बाद सूबे में इसे लेकर कई बातें सियासी गलियारों में गूंजने लगी. क्या चाचा नीतीश कुमार और भतीजा तेजस्वी एक बार फिर साथ आ सकते हैं?, क्या फिर सूबे में बड़ा उलटफेर नजर आएगा. बिहार में वैसे तीन पार्टियों का दबदबा फिलहाल मौजूदा समय में है. एक तरफ जहां पर नीतीश कुमार की पार्टी JDU है तो वहीं दूसरी तरफ लालू यादव की पार्टी RJD है. इन दोनों के अलावा सूबे में बीजेपी है. इन तीनो पार्टियों में अगर किसी पार्टी ने दूसरे पार्टी का हाथ थामा तो उनकी सरकार बनना तय हो जाएगा.
साल 2015 विधानसभा चुनाव परिणाम को देखने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी से खटास के बाद जब नीतीश ने आरजेडी का हाथ पकड़ा तो उनकी सरकार बनी थी. पिछले विधानसभा में एनडीए ने नीतीश से अलग होकर चुनाव लड़ा था तब उसे 58 सीटें मिली थी. आरजेडी-कांग्रेस-जेडीयू की महागठबंधन को 178 सीटें मिली थी. जिसके बाद सूबे में उनकी सरकार बनी. लेकिन ये यारियां ज्यादा समय नहीं चली और नीतीश ने वापस बीजेपी का हाथ थाम लिया. जिसके तेजस्वी लगातार नीतीश की सरकार पर हमला करते रहे हैं. यह भी पढ़ें:- बिहार विधानसभा चुनाव 2020: क्या प्रशांत किशोर के सूबे की सियासत में उभरने से BJP को होगा फायदा? कांग्रेस और उनके सहयोगियों को हो सकता है नुकसान
वैसे नीतीश कुमार की पार्टी के नेताओं ने खंडन किया है कि वे बीजेपी के साथ हैं और आगे भी रहेंगे. लेकिन ये बात भी साफ है कि बीजेपी और जेडीयू के पिछले कुछ समय से कोल्ड वॉर जारी है. इसका अंदाजा पार्टी के नेताओं का एक दूसरे पर हमला दर्शाता है. वहीं जेडीयू के विधायक तो तेजस्वी यादव की जमकर तारीफ भी कर चुके हैं.
वैसे राजनीति में कब क्या होगा और कौन किस पाले में जाएगा इसका अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल है. लेकिन एक बात तो अब साफ हो रही है कि बीजेपी को जो दिल्ली में हार मिली है उससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा फैल गई है. ऐसे में बीजेपी के नेताओं को अलख जगाना होगा.