क्या तेजस्वी की बेरोजगारी हटाओ यात्रा बदलेगी सूबे की सियासी तस्वीर, बीजेपी भी कस रही है कमर
अमित शाह, तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार (Photo Credits: PTI)

बिहार विधानसभा चुनाव 2020: कहतें हैं कि सियासी लड़ाई अगर जीतनी हो तो उसकी तैयारी पहले से करनी होती है. तब जाकर पार्टी जनता के विश्वास को जीतने में कामयाब होती है. यही कारण है कि बिहार के सियासी गलियारों में गहमागहमी का दौर अब अपना असली रंग लेने लगा है. दरअसल आरजेडी किसी भी हाल में इस बार हार का मुंह नहीं देखना चाहती है. इसी के चलते आरजेडी (RJD) नेता और पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) नीतीश कुमार की सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. तेजस्वी यादव ने बेरोजागी का मुद्दा बनाकर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में बेरोजगारी के मुद्दे पर बिहार सरकार को घेरने के लिए तेजस्वी यादव 23 फरवरी से यात्रा शुरू करने वाले हैं. इस यात्रा का नाम बेरोजगारी हटाओ यात्रा रखा गया है.

बिहार में बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है जो युवाओं से सीधे जोड़ने का काम करती है. शायद तेजस्वी इस बात से भलीभांति परचित भी हैं. उन्हें पता है कि अगर इस बार की चुनाव बेरोजगारी हटाओं का फार्मूला कामयाब हुआ तो उनकी राह आसान हो जाएगी. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में युवाओं की आबादी 60 फीसदी के करीब है. सूबे की अधिकांश जनता नौकरी की तलाश में अपने शहर और राज्य को छोड़ने पर मजबूर है. अब इसी को भुनाकर तेजस्वी अपना दांव खलने वाले हैं.

नीतीश के मंत्रियों के बदले सुर

चुनाव में भले ही अभी समय है. लेकिन तेजस्वी की बेरोजगारी हटाओं फार्मूला असर दिखाने लगा है. जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जद (यू) के विधान पार्षद जावेद इकबाल अंसारी और विधायक अमरनाथ गामी ने तेजस्वी की यात्रा के निर्णय को सही करार देते हुए उनकी जमकर तारीफ करने लगे हैं. अब इसे क्या कहें बिहार में नेता अब अपने फायदे को देखते हुए आलोचना और तारीफ कर रहे हैं या फिर उन्हें कुछ आभास होने लगा है.

तेजस्वी को मिल सकता है प्रशांत किशोर का साथ

सीएम नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के रिश्तों में खटास का दौर चल रहा है. नीतीश की नाराजगी का अंदाजा बस इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने प्रशांत किशोर को पार्टी के सभी पदों से मुक्त कर, बाहर का रास्ता दिखा दिया. सूत्रों की माने तो अगर नीतीश से नाराज प्रशांत किशोर आरजेडी का साथ देते हैं तो चुनावी समीकरण बदल भी सकता है. क्योंकि दिल्ली में सीएम केजरीवाल की जीत के पीछे सबसे बड़ा हाथ प्रशांत किशोर का भी माना जा रहा है. वैसे ऐसा नहीं की प्रशांत किशोर हर बार कामयाब हों, क्योंकि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का साथ दिया था लेकिन वहां पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.

बिहार विधानसभा में हुए पिछले चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो सभी 243 सीटों बीजेपी-कांग्रेस-आरजेडी और जेडीयू ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. इस चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी का साथ पकड़ लिया था. तब कांग्रेस-आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलाकर महागठबंधन बन था. जिसमें महागठबंधन ने 178 सीटें अपने नाम की तो एनडीए के खाते में महज 58 सीटें आईं. RJD को 80, JDU को 71, कांग्रेस को 27 और BJP को 53 सीटों जी‍त नसीब हुई. हालांकि बाद में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर फिर से सत्ता में आ गए थे.