नई दिल्ली: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर एक बार फिर आंदोलन तेज हो गया है. पिछले एक सप्ताह के भीतर राज्य में कई जगह आन्दोलन के दौरान तोड़फोड़ और आगजनी हुई. आंदोलनकारियों ने मुंबई में जेल भरो आंदोलन करने की चेतावनी दी है. यह आन्दोलन लगातार उग्र होता जा रहा है जिससे निपटना फडणवीस सरकार के लिए एक चुनौती है. सरकार की ओर से आंदोलन करने वालों से बातचीत तो की जा रही है मगर समस्या का कोई हल नहीं निकल सका है.
लोकसभा में महाराष्ट्र से 48 सांसद जाते हैं. ज्यादातर सीटों पर मराठा समाज का दबदबा है. अगले साल सूबे में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में राज्य में उग्र होता मराठा आंदोलन बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. 2014 आम चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना के साथ मिलकर 48 में से 40 से अधिक सीट हासिल की थी. मगर अब शिवसेना अगले आम चुनाव में अकेले लड़ने का एलान कर चुकी हैं.
बता दें कि मराठा समाज की मांग नौकरियों और शिक्षा में अपने समुदाय के लिए आरक्षण की है. राज्य में 30 प्रतिशत से ज्यादा मराठा समाज के लोग है. ऐसे में अगर यह आंदोलन जारी रहा तो अगले आम चुनावों में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वैसे अकेला मराठा समाज ही नहीं है जो बीजेपी के लिए 2019 में मुश्किल खड़ी कर सकता है. हरियाणा का जाट समाज और गुजरात का पाटीदार समाज भी बीजेपी की राह का रोड़ा बन सकता है.
जाट आरक्षण:
हरियाणा में बीजेपी की सरकार के लिए जाट आंदोलन लगातार परेशानी का सबब बना हुआ है. समाज की मांग है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में उन्हें ओबीसी कैटेगरी के तहत आरक्षण मिले. सूबे में 21 प्रतिशत जाट समुदाय के लोग हैं और ये किसी भी पार्टी की किस्मत बनाने या बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस समाज के आक्रामक होने से बीजेपी को अगले साल होने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं.
आरक्षण को लेकर जाट समाज ने 2016 में एक आन्दोलन किया था जो हिंसक हो गया था और उसमे करोड़ों का नुकसान हुआ था. अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक ने सोमवार को कहा कि अगर जाटों को आरक्षण नहीं मिला तो बीजेपी 40 साल के लिए सत्ता से दूर होगी. जाट समाज ने 16 अगस्त से आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है.
पाटीदार आंदोलन:
पिछले साल हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन का असर साफ़ देखने को मिला था. पाटीदार आंदोलन की वजह से ही बीजेपी की सीटों में कमी आई और कांग्रेस को राज्य में संजीवनी मिली. पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक ने बीजेपी का विरोध और कांग्रेस का समर्थन किया था और इसका बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा. राज्य में ऐसी 52 सीट थी जहां पाटीदारों की 20 फीसदी से ज्यादा थी. वहां बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान हुआ है. वहीं कांग्रेस को 9 सीटों का फायदा हुआ है.
बीजेपी को इस आंदोलन का खामियाजा अगले आम चुनावों में भी भुगतना पड़ सकता हैं. हार्दिक पटेल आरक्षण की मांगो को लेकर लगातार बीजेपी पर हमला कर रहे हैं. अगर उन्होंने कांग्रेस का साथ दिया तो बीजेपी को सीटों का नुक्सान झेलना पड़ सकता है. सूबे में लोकसभा की 26 सीट हैं और 2014 आम चुनाव के दौरान बीजेपी ने मोदी लहर के सहारे सभी जगहों पर जीत दर्ज की थी.
बहरहाल, यह बात तो साफ़ है कि ये तीनो आंदोलन अगले साल होने वाले आम चुनावों में बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकते हैं. अगर बीजेपी को सत्ता में दोबारा वापसी करनी है तो उन्हें इन आंदोलनों को शांत करना होगा. अगर ऐसा नहीं किया तो तीन राज्यों में उन्हें काफी नुक्सान हो सकता है.