हैदराबाद: कोरोना विषाणु (Coronavirus) का पता 2019 में लगा था और तब से इसके अनेक वेरिएंट अल्फा (Alfa), बीटा (Beta), गामा (Gamma), डेल्टा (Delta), लैम्ड़ा (Lambda) और डेल्मीक्रोन (Delmicron) सामने आ चुके हैं तथा इनमें सैंकड़ों बदलाव आ गए है, मगर अब लोगों को इनके साथ ही जीना होगा. इन विषाणुओं की चपेट में अरबों लोग आ चुके हैं और 50 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई है. दो साल पहले शुरू हुआ कोरोना संक्रमण का खतरा अभी भी नहीं टला है और ऐसा भी नहीं दिख रहा है कि यह वायरस जल्दी ही मानवता का पीछा छोड़ देगा. Omicron Variant: शोधकर्ताओं ने कहा- ओमिक्रोन संक्रमण भविष्य में कोरोना की घातकता में कमी करेगा, डेल्टा से सुरक्षा देगा
इसे देखते हुए चिकित्सकों का मानना है कि लोगों को सावधानी बरतते हुए इसी के साथ जीना सीखना होगा. यूरोप जनवरी 2020 से लगाए गए सभी प्रतिबंधों में ढील देने के लिए तैयार है और लोगों से अपेक्षा की जा रही है कि वे बदले हुए वातावरण के आदी हो जाएं. भारत के लोगों को भी इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि कोविड अब एक स्थानिक विषाणु बन चुका है और यह किसी भी अन्य वायरस या फ्लू की तरह हो गया है जो कभी समाप्त नहीं होगा.
सेंचुरी हॉस्पिटल के फेंफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ रोहित रेड्डी पाथुरी ने बदलते टिप्पणी करते हुए कहा कि समय के साथ कोरोनावायरस क्या आकार और रूप लेगा, इसे लेकर बहुत अधिक अनिश्चितता है. क्या यह अधिक लोगों को प्रभावित करेगा या इसका नया वेरिएंट अधिक घातक होगा. इसमें अभी और कितने बदलाव आऐंगे, हम कितने अधिक उत्परिवर्तन देखेंगे, क्या हमने इस वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा हासिल कर ली है,कुछ भी निश्चित नहीं है. हम डॉक्टर अभी भी कोविड के लक्षणों की निगरानी कर रहे हैं लेकिन यह भी जरूरी है कि लोग सतर्क रहें, और सुनिश्चित करें कि वे सभी आवश्यक सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं.
एसएलजी अस्पताल के सलाहकार चिकित्सक डा. एस रवींद्र कुमार ने कहाव्यवसाय और कारोबार को बंद नहीं किया जा सकता है, लोगों को जीविकोपार्जन के लिए बाहर निकलना ही होगा, छात्रों को बेहतर शैक्षणिक प्रगति के लिए व्यक्तिगत तौर कक्षाओं में भाग लेना चाहिए, दुनिया को आगे बढ़ना ही होगा. हम निरंतर जोखिम के बारे में चिंतित हैं लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि लोगों को आर्थिक और आजीविका कारणों के चलते बाहर निकलना होगा. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि लोग आवश्यक सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करें ताकि वे आसानी से वायरस के संपर्क में नहीं आएं.
ग्लोबल अस्पताल के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट सुधीर प्रसाद के अनुसार, दुनिया संक्रमण के दौर से गुजर रही है और बदलते समय के लिए थोड़ी अलग प्रतिक्रिया शुरू करनी पड़ सकती है. हमें अपने व्यवहार को भी बदलना होगा, क्योंकि हमें पेशेवर या आर्थिक कारणों से बाहर तो जाना ही होगा और लोगों के साथ संपर्क भी करना होगा. लोगों ने अब तो गूगल साइट पर स्थानिक शब्द खोजना शुरू कर दिया और वे इसका अर्थ समझना चाहते हैं कि यह जीवन को कैसे प्रभावित करने वाला है. कोई भी शैक्षणिक संस्थान या व्यावसायिक प्रतिष्ठान हमेशा के लिए बंद नहीं रह सकता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि लोग बदलते परि²श्य के अनुकूल हों और चुनौतियों के साथ जीना शुरू करें.
कामिनेनी अस्पताल के डॉ मोहम्मद वसीम, सलाहकार पल्मोनोलॉजिस्ट ने कहा बड़े शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, पिछले कुछ महीनों में कोविड संक्रमण के कारण होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है. लेकिन इसके नए वेरिएंट ओमिक्रोन के कारण भारत और दुनिया भर में मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. चिकित्सकों में इसके जोखिम को लेकर व्यापक रूप से बहस चल रही है. क्योंकि कोरोनवायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या में फिलहाल कोई खास वृद्धि नहीं हुई है. यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि यह नया वेरिएंट पहले के अन्य विषाणुओं के जैसा खतरनाक नहीं हो है इसलिए, लोग अपना सामान्य जीवन जी रहे हैं, दैनिक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं और शैक्षणिक सत्र में भाग ले रहे हैं। लेकिन सतर्कता भी बरती जानी जरूरी है.
वॉकहार्ट अस्पताल, नागपुर के सलाहकार, आंतरिक चिकित्सा
डा महेश सारदा के मुताबिक एक बच्चे के समग्र विकास में स्कूल में भाग लेना एक महत्वपूर्ण है. कोविड ने छात्रों को दो शैक्षणिक वर्षों के लिए अपनी कक्षाओं से दूर रखा है, और कुछ ने अपने दोस्तों के साथ अच्छी तरह से बातचीत नहीं की है. इस सबका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ने की संभावना है. यह महत्वपूर्ण है कि माता-पिता को भी इसे स्वीकार करना होगा कि यह वायरस जल्द ही हमें नहीं छोड़गा इसलिए सतर्क रहें, कोविड के उचित व्यवहार का पालन करें और अपने बच्चों को बेहतर शैक्षणिक और मानसिक विकास के लिए स्कूलों में भेजें.
इसे देखते हुए स्पेन, ब्रिटेन और अन्य देश कोविड प्रतिबंधों में ढील दे रहे हैं तथा कुछ और यूरोपीय देश भी अनिवार्य रूप से मास्क पहनने में रियायत दे रहे हैं. अमेरिका जिसने पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक संक्रमण और मौतें देखी हैं, वह भी प्रतिबंधों में पूरी तरह से ढील दे सकता है. इस बदलते समय को देखते हुए भारत भी पीछे नहीं रह सकता है और उभरते हुए रुझानों के साथ तालमेल बिठाना होगा. इसलिए सबसे अच्छा काम जो लोग कर सकते हैं वह यही है कि सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आत्म-अनुशासन का अभ्यास करें, मास्क पहनें और जहां संभव हो सामाजिक दूरी बनाए रखें, और सामान्य रूप से जीवन जीने की ओर बढ़ें.