1952 में आज ही शुरू हुआ था ‘आजाद भारत’ का पहला संसद सत्र, जानें लोकतंत्र के मंदिर की रोचक गाथा
संसद भवन (Photo Credits : Wikimedia Commons)

स्वतंत्र भारत का पहला संसद सत्र आज यानी 13 मई 1952 से शुरू हुआ था. संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है, जहां दो सदनों की व्यवस्था है. पहला लोकसभा, जिसे लोगों का सदन कहते हैं. लोकसभा में जनता द्वारा चुने सदस्य होते हैं जिनकी अधिकतम संख्या 552 होती है, और दूसरा राज्यसभा जिसे राज्यों का सदन कहते हैं. राज्य सभा एक स्थाई सदन है जिसके सदस्यों की कुल संख्या 240 होती है. भारत के राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह जब चाहे दोनों सदनों को बुलाये अथवा स्थगित करे. विशेष परिस्थितियों में वह लोकसभा को भंग भी कर सकता है और अधिकतम एक वर्ष का विस्तार भी दे सकता है.

‘संसद’ से जुड़ी संवेदना

भारतीय लोकतंत्र में ‘संसद’ जनता की सर्वोच्‍च प्रतिनिधि संस्‍था है. संसद इस बात का प्रतीक है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, और जनमत सर्वोपरि होता है. इसी माध्‍यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्‍यक्‍ति मिलती है. भारत में दुनिया का सबसे सशक्त लोकतंत्र है. भारतीय संसद को लोकतंत्र का मंदिर भी कहा जाता है. संसद से सवा सौ करोड़ भारतवासियों की भावनाओं, अपेक्षाओं और भविष्य की रूपरेखा तैयार होती है.

संसद भवन का निर्माण

नई दिल्ली स्थित संसद भवन के निर्माण में लगभग 83 लाख रुपए की लागत के साथ 6 साल का समय लगा था. इसकी नींव 12 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ क्‍नॉट ने रखी थी. इसकी परिकल्पना दो विश्वविख्यात वास्तुकार सर एडिवन लुटियंस और सर हर्बर्ट ने रखी थी. अपनी डिजाइन के कारण शुरू में इसे ‘सर्कुलर हाउस’ कहा जाता था. इसका उद्घाटन भारत के तत्‍कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी 1927 को किया था. 14-15 अगस्त 1947 को अंग्रेज़ो से भारत में सत्ता का हस्तांतरण संसद के सेंट्रल हॉल से हुआ था. भारतीय संविधान का प्रारूप भी इसी हॉल में तैयार किया गया था. आजादी के बाद नयी सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग बनने तक सेंट्रल हॉल में ही देश का सुप्रीम कोर्ट चलता था. संसद की लाइब्रेरी देश की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी है. इस लाइब्रेरी में भारत के संविधान की हिंदी और अग्रेजी में हाथ से लिखी प्रतिलिपि नाइट्रोजन गैस से भरे चैंबर में सुरक्षित रखी गयी है. संसद की गोलाकर संरचना निरंतरता की प्रतीक है, यह इस बात को दर्शाती है कि यह सत्ता बनी रहेगी और कभी खत्म नहीं होगी।

26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में भारत की संविधान सभा को संपूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न निकाय घोषित किया गया. 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को इस सभा ने देश में शासन चलाने के पूर्ण अधिकार हासिल कर लिया था. अधिनियम की धारा 8 के द्वारा संविधान सभा को सभी विधायी शक्तियां प्राप्त हो गईं. इसके पश्चात संविधान सभा की एक अलग निकाय के रूप में पहली बैठक 17 नवम्बर 1947 को हुई. इसके अध्यक्ष सभा के प्रधान डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद थे. ‘संविधान अध्यक्ष’ पद के लिए श्री जी.वी. मावलंकर निर्विरोध चुन लिये गये थे. 14 नवम्बर 1948 को डॉ. बी॰आर॰ अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया. 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ. इस तरह संपूर्ण संसदीय प्रणाली स्थापित हुई.

नया संविधान और पहला आम चुनाव 1951-52

स्वतंत्र भारत का पहला संसद सत्र 13 मई 1952 को शुरु किया गया था. इसके पूर्व 3 अप्रैल 1952 को पहली बार उच्च सदन यानी राज्यसभा का गठन किया गया और इसका पहला सत्र 13 मई 1952 के दिन आयोजित किया गया. उसी तरह 7 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा का गठन हुआ, जिसका पहला सत्र 13 मई 1952 में गठित किया गया. पहली चुनी हुई संसद के दो सदन थे. राज्यसभा और लोकसभा. इस पहले संसद के अध्यक्ष और स्पीकर थे, श्री जी वी मावलंकर. 1952 में पहली बार गठित राज्यसभा एक निरंतर रहने वाला, स्थायी सदन है, जिसका विघटन नहीं होता.

संसद की रूपरेखा

संसद को दो सदनों में में बांटा गया है. लोकसभा को निचले सदन के रूप में जाना जाता है और राज्यसभा को ऊपरी सदन के रूप में. भारतीय संसद राष्‍ट्रपति और दो सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) से मिलकर बनती है. भारतीय संविधान के अनुसार लोकसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें 530 सदस्य विभिन्न राज्यों के और 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. भारत के प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा-सदस्य मिलते है. लोकसभा का गठन अपने प्रथम अधिवेशन की तिथि से पाँच वर्ष के लिए होता है. राज्यसभा में 250 सदस्य होते हैं, जिनमे 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित होते हैं. इन्हें ‘नामित सदस्य’ कहा जाता है. अन्य सदस्यों का चुनाव होता है. राज्यसभा में सदस्य 6 साल के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य हर 2 साल में सेवा-निवृत होते हैं. भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं. राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को हुआ था.

संसद में लटके उल्टे पंखे का रहस्य क्या है

हर देश के लिए उसका संसद भवन बहुत खास होता है. भारत के संसद भवन की वास्तुकला एवं उसकी भव्यता जहां लोगों को प्रभावित करती है, वहीं राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह वाले कमरे में लगे सीलिंग के उलटे पंखे हर किसी को हैरत में डालते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ये पंखे शुरु से ही उल्‍टे लए हैं. संसद भवन की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए सालों से इसमें कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया गया है. कुछ लोग इसे वास्तु का टोटका भी मानते हैं, इसलिए उम्मीद है कि ये आगे भी ऐसे ही रहें.