भोपाल, 14 जनवरी : मध्य प्रदेश के विधानसभा के बाद सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस लोकसभा चुनाव में किसी भी तरह की चूक करने को तैयार नहीं हैं. दोनों ही दल जमीनी स्तर की जमावट पर जोर दे रहे हैं. विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस में उम्मीद जगा दी है तो वहीं भाजपा संभावित खतरों को भांप चुकी है.
राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भारी बढ़त मिली. 230 विधानसभा सीटों में से 163 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते, वहीं कांग्रेस 66 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. सीटों के लिहाज से देखें तो भाजपा और कांग्रेस में बड़ा अंतर है, मगर इन सीटों को हम लोकसभा के लिहाज से देखते हैं तो नतीजा भाजपा की चिंता बढ़ा देने वाले हैं. यह भी पढ़े : Milind Deora Resigns From Congress: राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से पहले मुंबई में कांग्रेस को बड़ा झटका, मिलिंद देवड़ा ने पार्टी छोड़ी
राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं जिनमें से 2019 में 28 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी, वहीं कांग्रेस के खाते में छिंदवाड़ा सीट है. अगर लोकसभा संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर गौर करें तो एक बात साफ नजर आती है कि मुरैना संसदीय क्षेत्र की 5 सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, इसी तरह भिंड की चार, ग्वालियर की चार, टीकमगढ़ की तीन, मंडला की पांच, बालाघाट की चार, रतलाम की चार, धार की पांच और खरगोन की पांच सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा.
छिंदवाड़ा एक ऐसी संसदीय सीट है जहां पर भाजपा एक भी स्थान पर विधानसभा में नहीं जीत सकी. इन संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों के कुल मतों की गणना करें तो एक बात साफ होती है कि मुरैना, ग्वालियर, मंडला, भिंड, बालाघाट, छिंदवाड़ा, धार में भाजपा को पिछड़ना पड़ा है. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने जहां चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों की बैठक बुलाई, वहीं पदाधिकारी से संवाद किया. भाजपा ने तो अब उन बूथ पर जोर देना शुरू कर दिया है जहां उसे हार का सामना करना पड़ा था. प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा एक तरफ जहां बैठक कर रहे हैं और भोपाल में ही प्रवास कर रहे हैं, दूसरी ओर मुख्यमंत्री मोहन यादव क्षेत्रीय इलाकों का दौरा कर रहे हैं.
उधर कांग्रेस ने भी आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनानी शुरू कर दी है. प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे के साथ मिलकर दौरे पर निकल पड़े हैं. उनका कहना है कि विधानसभा के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को कांग्रेस मैं नहीं हम की रणनीति पर लड़ने जा रही है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्य प्रदेश में होने वाले लोकसभा चुनाव विधानसभा से हटकर होंगे, लेकिन भाजपा के लिए उतने आसान नहीं होंगे जितने वर्ष 2019 के चुनाव थे. यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने तैयारी तेज कर दी है और वह हर हाल में जीत हासिल करना चाह रहे हैं. इसके चलते राज्य में चुनाव रोचक और कड़े होने की संभावना है. इन चुनाव में जो एक भी चूक करेगा उसे बड़ा नुकसान होना तय है.