भोपाल, 7 दिसंबर : मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. तमाम बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है, जिनमें नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह भी शामिल हैं. अब पार्टी की कमी और खामियों की खुलकर चर्चा हो रही है. यही कारण है कि राष्ट्रीय नेतृत्व बड़े बदलाव की तैयारी में है. राज्य विधानसभा के चुनाव के नतीजे ऐसे आए हैं जिसकी कल्पना कांग्रेस ने नहीं की थी. वह तो सत्ता का सपना संजोए हुए थी, मगर ऐसा हुआ नहीं. कांग्रेस के खाते में 230 सीटों में से सिर्फ 66 सीटैं आई. कुल मिलाकर वह तीन अंकों तक भी नहीं पहुंच पाई. इस चुनाव में कांग्रेस के तमाम बड़े दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा है और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह तक अपने को हार से नहीं बचा पाए. गोविंद सिंह की सीट लहार विधानसभा क्षेत्र को सबसे सुरक्षित माना जा रहा था, मगर वहां भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
नतीजों के बाद से ही कांग्रेस में बड़़ बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. कांग्रेस को वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल हुई थी और इसमें कांग्रेस के संगठन के तौर पर दो बड़े नेताओं की भूमिका रही थी. पहले पार्टी के अध्यक्ष रहे अरुण यादव और उसके बाद कमान संभालने वाले कमलनाथ. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए पार्टी की राज्य में ऐसी पिच तैयार कर दी थी जिस पर कांग्रेस को खेलना आसान हो गया था और कमलनाथ को राज्य की कमान मिलने के बाद उन्होंने गुटबाजी को खत्म कर दिया, सबको एक साथ किया. परिणाम स्वरुप कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में बढत हासिल कर गई. यह भी पढ़ें : Money Laundering Cases: अजीत पवार के एनसीपी गुट में शामिल हुए महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक
सत्ता में आई कांग्रेस अपनों को ही नहीं संभाल पाई और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. लिहाजा सत्ता हाथ से खिसक गई. अब एक बार फिर इस बात की चर्चा है कि कमल नाथ प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते हैं और उनके स्थान पर पार्टी किसी सक्रिय युवा को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है. इसके लिए दावेदारों की बात करें तो सबसे पहला नाम अरुण यादव का आता है, उसके बाद उमंग सिंघार, जीतू पटवारी और कमलेश्वर पटेल जैसे नेता कतार में हैं. एक तरफ जहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को लेकर मंथन कर रही है और यह तभी संभव है जब कमल नाथ इस पद को छोड़ते हैं, मगर नेता प्रतिपक्ष नया बनना तय है.
इस पद के लिए बड़े दावेदारों में कमलनाथ के अलावा अजय सिंह हैं जो पूर्व में नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं और उनकी विधानसभा के अंदर आक्रामकता सबके सामने रही है. कमल नाथ अगर नेता प्रतिपक्ष नहीं बनते हैं तो सबसे बड़ा दावा अजय सिंह का ही होगा. पार्टी आदिवासी चेहरे के तौर पर उमंग सिंघार को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में बड़ी उथल-पुथल है और बदलाव होना तय माना जा रहा है. हां यह बात अलग है कि कमलनाथ कह चुके हैं कि मैं दिल्ली क्यों जाऊंगा. इसका आशय साफ है कि वे मध्य प्रदेश में ही रहेंगे और उनका सारा जोर लोकसभा चुनाव पर रहेगा. देखना होगा कि कांग्रेस आगे किस तरह की रणनीति पर काम करती है.