उत्तराखंड के हरिद्वार में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित दो मस्जिदों और एक मजार के सामने शुक्रवार को सफेद कपड़े के बड़े-बड़े पर्दे लगाए गए थे ताकि "परेशानी से बचा जा सके". हालांकि, विभिन्न वर्गों के विरोध के बाद शाम तक ये पर्दे हटा दिए गए.
ये पर्दे ज्वालापुर क्षेत्र में स्थित मस्जिदों और मजार के सामने बांस के मचान पर लटकाए गए थे. मस्जिद के मौलाना और मजार के रखवाले ने बताया कि उन्हें इस बारे में किसी भी प्रशासनिक आदेश की जानकारी नहीं है और कहा कि यात्रा के दौरान इस तरह का कदम पहली बार उठाया गया है. हालांकि, हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट से संपर्क नहीं हो सका, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने संवाददाताओं को बताया कि यह कदम शांति बनाए रखने के लिए उठाया गया था. समाचार एजेंसी पीटीआई ने मंत्री के हवाले से कहा, "ऐसा कुछ भी केवल परेशानी से बचने के लिए किया जाता है."
उन्होंने कहा, "यह कोई बड़ी बात नहीं है. निर्माणाधीन इमारतों को भी हम ढक देते हैं." स्थानीय लोगों और राजनेताओं समेत कई वर्गों के विरोध के बाद जिला प्रशासन ने बाद में कपड़े के पर्दे हटा दिए. यात्रा के प्रबंधन के लिए प्रशासन द्वारा नियुक्त विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) दानिश अली ने पीटीआई को बताया, "हमें रेलवे पुलिस पोस्ट से पर्दे हटाने का आदेश मिला था. इसलिए हम इन्हें हटाने आए हैं."
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री नईम कुरेशी ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा. उन्होंने कहा, "हम मुसलमान हमेशा कांवड़ मेले के लिए शिव भक्तों का स्वागत करते हैं और विभिन्न स्थानों पर उनके लिए जलपान की व्यवस्था करते हैं. यह हरिद्वार में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव का उदाहरण रहा है और यहां पर्दे लगाने की कोई परंपरा नहीं रही."
कुरेशी ने कहा कि कांवड़ मेला शुरू होने से पहले प्रशासन ने एक बैठक की थी और हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के सदस्यों को एसपीओ बनाया गया था. मजार के रखवाले शकील अहमद ने कहा कि इस बारे में मजार को ढकने के बारे में किसी ने भी उनसे बात नहीं की थी.
कांग्रेस नेता और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राव अफ़ाक अली ने कहा कि मस्जिदों और मजारों को ढकने का प्रशासन का फैसला चौंकाने वाला है. आज मस्जिदों को ढका जा रहा है, अगर कल इसी तरह मंदिरों को ढका गया तो क्या होगा ?"
उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि पर्दे लगाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ है, जिसने एक ऐसे ही आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें यात्रा मार्ग पर होटल और रेस्टोरेंट मालिकों और फल विक्रेताओं को उनके नाम, जाति और धार्मिक पहचान प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था."