नई दिल्ली: भारत में अस्थमा, ग्लूकोमा, टीबी, थैलेसीमिया और मानसिक स्वास्थ्य जैसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली जरूरी दवाओं की कीमतों में 50% से अधिक की बढ़ोतरी होने जा रही है. यह कदम दवाओं की कमी को रोकने और बाजार से उनके गायब होने से बचाने के लिए उठाया गया है. नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने आठ जरूरी दवाओं के लिए नई अधिकतम मूल्य सीमा तय की है.
इस बढ़ोतरी का उद्देश्य दोहरे लक्ष्यों को पूरा करना है - दवाओं की उपलब्धता और उन्हें किफायती बनाए रखना. यह दवाएं आमतौर पर सस्ती होती हैं और पहली पंक्ति के इलाज के रूप में प्रयोग की जाती हैं, जो भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.
कौन सी दवाओं पर लागू होगी यह बढ़ोतरी?
- इस बढ़ोतरी में कुल 11 दवा फॉर्मूलेशन शामिल हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- बेंजिलपेनिसिलिन इंजेक्शन (10 लाख IU) - इसका इस्तेमाल बैक्टीरियल संक्रमणों के इलाज में होता है.
- एट्रोपिन इंजेक्शन (0.6 मिलीग्राम प्रति एमएल) - इसे हृदय गति से संबंधित समस्याओं में प्रयोग किया जाता है.
- स्ट्रेप्टोमाइसिन पाउडर (750mg और 1000mg) - यह टीबी के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक है.
- सालबुटामोल टैबलेट्स (2mg और 4mg) - अस्थमा के मरीजों के लिए यह एक आम दवा है.
- पिलोकार्पिन 2% आई ड्रॉप्स - यह आंखों की समस्याओं में प्रयोग होती है, खासतौर पर ग्लूकोमा के इलाज में.
- सेफाड्रोक्सिल टैबलेट्स (500mg) - यह एक एंटीबायोटिक है जो बैक्टीरियल संक्रमण का इलाज करता है.
- लिथियम टैबलेट्स (300mg) - मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में इसका इस्तेमाल होता है.
कीमतों में बढ़ोतरी की आवश्यकता क्यों पड़ी?
हाल ही में NPPA को कई दवा निर्माताओं से मूल्य बढ़ाने के अनुरोध मिले थे. इसका कारण यह है कि कच्चे माल की लागत, उत्पादन खर्च और विदेशी मुद्रा दरों में उतार-चढ़ाव के कारण दवाओं का निर्माण महंगा हो गया है. कुछ कंपनियों ने तो दवाओं के उत्पादन को रोकने की भी धमकी दी थी क्योंकि उनके लिए मौजूदा मूल्य सीमा में उत्पादन करना संभव नहीं रह गया था.
इस फैसले को समय पर लिया गया जरूरी कदम माना जा रहा है, ताकि दवाएं भारतीय बाजार से गायब न हों. उदाहरण के तौर पर, बेंजिलपेनिसिलिन और एट्रोपिन जैसी दवाएं बहुत कम कीमत पर बेची जाती हैं. अगर इनकी कीमतें नहीं बढ़ाई गईं तो कई कंपनियां इनका उत्पादन बंद कर सकती हैं.
इस कदम से दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और भारतीय जनता के लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ जारी रहेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बढ़ोतरी उद्योग और मरीजों दोनों के लिए लाभकारी साबित होगी, क्योंकि यह दवाओं की कमी को रोकने में मदद करेगी.