सीएम हेमंत के भाई बसंत सोरेन की विधायकी भी खतरे में, खनन कंपनी में पार्टनरशिप की बात छिपाई थी, चुनाव आयोग ने राज्यपाल को भेजा मंतव्य
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद उनके छोटे भाई दुमका के झामुमो विधायक बसंत सोरेन की विधायकी पर भी खतरे की तलवार लटक गई है. चुनाव आयोग ने कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट मामले में उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर शुक्रवार को झारखंड के राज्यपाल के पास अपना मंतव्य भेजा है.
रांची, 10 सितंबर : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद उनके छोटे भाई दुमका के झामुमो विधायक बसंत सोरेन की विधायकी पर भी खतरे की तलवार लटक गई है. चुनाव आयोग ने कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट मामले में उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर शुक्रवार को झारखंड के राज्यपाल के पास अपना मंतव्य भेजा है.
बसंत सोरेन सोरेन पश्चिम बंगाल की माइनिंग कंपनी चंद्रा स्टोन के मालिक दिनेश कुमार सिंह के बिजनेस पार्टनर हैं. वह पार्टनरशिप में मेसर्स ग्रैंड माइनिंग नामक कंपनी भी चलाते हैं. पाकुड़ में चल रही इस कंपनी में भूपेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह और बसंत सोरेन पार्टनर हैं. उन्होंने चुनावी हलफनामे में इनका उल्लेख नहीं किया था. भाजपा ने इसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 ए के नियमों का उल्लंघन बताते हुए उन्हें विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित करने की मांग की थी. इसे लेकर राज्यपाल के पास लिखित शिकायत की गयी थी. यह भी पढ़ें : कर्नाटक में सरकारी धन का दुरुपयोग करने पर पांच लोगों को जेल
हेमंत सोरेन के मामले की तरह इसमें भी राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था. इसके बाद चुनाव आयोग ने बसंत सोरेन और शिकायतकर्ता भाजपा को नोटिस कर मामले की सुनवाई की थी. अंतिम सुनवाई बीते 29 अगस्त को हुई थी. इसी मामले में अब चुनाव आयोग ने उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर झारखंड के राजभवन को मंतव्य भेज दिया है. हेमंत सोरेन के मामले की तरह बसंत सोरेन के केस में भी चुनाव आयोग के मंतव्य के अनुसार राज्यपाल को निर्णय लेना है. राजभवन की ओर से इस बाबत कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान दुमका के विधायक बसंत सोरेन की तरफ से उनके अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि यह मामला राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का नहीं है. इसकी अनदेखी करते हुए राजभवन ने संविधान के अनुच्छेद 191 (1) के तहत चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा. बसंत सोरेन ने अगर आयोग के समक्ष दिए गए शपथपत्र में तथ्यों को छिपाया है तो हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल कर उनकी सदस्यता को चुनौती दी जा सकती है. दूसरी तरफ भाजपा के अधिवक्ता ने इसपर दलील दी कि बसंत सोरेन जिस माइनिंग कंपनी से जुड़े हैं, वह राज्य में खनन करती है. बसंत सोरेन का इससे जुड़ाव अधिकारियों को प्रभावित करता है. यह कंफ्लिक्ट आफ इंट्रेस्ट का मामला है. ऐसे में उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए.